द एचडी न्यूज डेस्क : बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है. साधारण नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने पूरी जिंदगी कांग्रेस विरोधी राजनीति करते हुए अपना सियासी मुकाम स्थापित किया था. इंदिरा गांधी आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं. लेकिन आज सियासत ने कांग्रेस को ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि वो उन्हीं कर्पूरी ठाकुर के नाम के सहारे बिहार में अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहती है.
कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को अपना घोषणा पत्र जारी किया. इसमें तमाम लोकलुभावने वादों के साथ कर्पूरी ठाकुर के नाम से सुविधा केंद्र (मजदूर सूचना केंद्र) खोलने का वादा भी शामिल है. कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि बिहार के जो लोग देश के अलग-अलग राज्यों में नौकरी के लिए जाते हैं, उनकी सुविधा के लिए सभी राज्यों में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोले जाएंगे. इन सुविधा केंद्रों पर सरकारी डॉक्टर से लेकर तमाम तरह की सुविधाओं की व्यवस्था होगी. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कांग्रेस अपने विरोधी रहे कर्पूरी ठाकुर के नाम को क्यों अपनाना चाहती है?
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर का बिहार में दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों के बीच काफी सम्मान है. उन्होंने जरूर पूरी जिंदगी कांग्रेस विरोध की राजनीति की है, लेकिन उन्होंने जो सामाजिक न्याय के हक में काम किया है, उसका अपना राजनीतिक प्रभाव है. यही वजह है कि कांग्रेस भी अब कर्पूरी ठाकुर के नाम के सहारे बिहार में अपनी सियासत चमकाना चाहती है. इसीलिए अपने घोषणा पत्र में कर्पूरी ठाकुर के नाम से सूचना केंद्र खोलने का वादा किया है.
दरअसल, बिहार में कर्पूरी ठाकुर 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे. बिहार में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई कर दी गई. राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया गया. मुख्यमंत्री के तौर पर महज ढाई साल के वक्त में उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम करके दिखाए, जिससे बिहार की सियासत ही बदल गई. इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और कर्पूरी ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बन गए.
कर्पूरी ठाकुर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरु थे. इन दोनों नेताओं ने जनता पार्टी के दौर में कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे. इसीलिए लालू यादव ने जब सत्ता की कमान संभाली तो कर्पूरी ठाकुर के कामों को ही आगे बढ़ाने का काम किया और नीतीश कुमार ने अति पिछड़े समुदाय के हक में कई कदम उठाए. कार्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर जेडीयू से मौजूदा समय में राज्यसभा सदस्य हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कांग्रेस बिहार में काफी कन्फ्यूज है और राजनीतिक जनाधार भी नहीं बचा है. आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है जबकि एक दौर में लालू यादव ने कांग्रेस के खिलाफ अपनी राजनीति शुरू की थी. बिहार में कांग्रेस हमेशा से कर्पूरी ठाकुर का विरोध करते रही, लेकिन अब हालत बदल गए हैं. कांग्रेस के पुराने नेता बचे नहीं हैं, जो मौजूदा समय में हैं उनका अपना कोई राजनीतिक आधार नहीं है. इसके अलावा बिहार में जो कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हैं, उनके नाम पर कांग्रेस बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकती. इसीलिए कर्पूरी ठाकुर के नाम पर अपनी योजनाओं को रखने का ऐलान किया है.
अरविंद मोहन कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच वे लोकप्रिय नाम हैं. बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 फीसदी है. बिहार में अति पिछड़े समुदाय के बीच नीतीश की अच्छी पकड़ मानी जाती है, जिसके साधने के लिए ही कांग्रेस कर्पूरी ठाकुर के नाम का इस्तेमाल कर रही है. बिहार में ओबीसी और अति पिछड़े के वोट बिहार के सभी क्षेत्रीय दलों में विभाजित होते हैं, लेकिन इस 52 फीसदी में से एक बड़ा हिस्सा जिस दल के पक्ष में जाएगा, उसके लिए सत्ता की राह आसान होगी.
संजय कुमार मुनचुन की रिपोर्ट