द एचडी न्यूज डेस्क : सीएम नीतीश कुमार जिन्हें बिहार में उनके समर्थक सुशासन बाबू के नाम से बुलाते हैं. नीतीश कुमार बिहार की सियासत में स्वयंभू मर्दाया पुरुष के तौर पर भी जाने जाते हैं. नीतीश कुमार को विपक्ष पलटू कुमार की उपाधि भी दे चुका है. लेकिन कोरोना कहर में भी नीतीश की सरकार अपने वादों से पलटी मार लेगी यह किसी ने अबतक सोचा भी नहीं होगा.
दरअसल, कोरोना और लॉकडाउन की मार झेल रही बिहार की गरीब जनता से नीतीश के सुशासन ने एक बड़ा धोखा किया है. बिहार की मासूम जनता के साथ सरकारी छलावा हुआ है. क्या है वह धोखा हम आपको बतातें हैं. लेकिन उससे पहले चार मई को दिया गया नीतीश कुमार का इस बयान को जरा देखें.
अपने बयान में नीतीश कुमार अपने गले की नसें तानकर पूरे दावे के साथ कह रहे हैं कि लॉकडाउन में बाहर से आने वाले प्रवासियों को सभी सुविधाओं के साथ क्वारेंटाइन में रखा जाएगा. और जब वे अपने घर के लिए रवाना होंगे तो उन्हें आने-जाने के किराए के साथ-साथ सरकार 500 रुपए अतिरिक्त मदद के तौर पर भी देगी. लेकिन नीतीश की सरकार ने अब गरीबों के साथ धोका कर डाला है.
नीतीश के इशारे पर आपदा विभाग ने एक चिट्टी जारी की है. जरा गौर कीजिए इस चिट्ठी पर. इस विभागीय आदेश में साफ तौर पर लिखा गया है कि बिहार आने वाले सभी लोगों को सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी. सरकार उसे ही आने-जाने का किराया देगी जिनके नाम पर अपना बैंक खाता होगा. शर्त इतनी ही नहीं है. बल्कि वह खाता बिहार के ही किसी ब्रांच में होना चाहिए. इसके बाद शर्त यह भी है कि लाभ लेने वाले के पास मोबाइल फोन का होना बेहद जरुरी है.
अब आप खुद सोचिए. जब नीतीश कुमार ने मदद देने की घोषणा की थी तब हर किसी को मदद का भरोसा दिया गया था. लेकिन अब सरकार अपने ही वादों से पलट चुकी है. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि जिनके बैंक खाते नहीं क्या उन्हें बिहार की सरकार पीड़ित नहीं मानती. जिनके खाते अन्य प्रदेशों में हैं क्या उन्हें बिहारी कहलाने का हक नहीं. क्या बिहार की राहत में उनका कोई योगदान नहीं. ये वही नीतीश कुमार हैं जो चुनाव के वक्त यह अपील करते हैं कि कोई भी बिहारी किसी भी प्रदेश में रहता हो लेकिन चुनाव में वोट उसे जरुर देना चाहिए. लेकिन जब बाद मदद और राहत देने की आती है तो फिर ये बिहारियों में भी भेदभाव ढूंढने लगते हैं.