PATNA: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराना एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है. यह संविधान की मूल भावना और आरक्षण की मूल अवधारणा के विपरीत है. आरक्षण का प्रावधान सामाजिक भेदभाव व विषमता को खत्म कर सामाजिक न्याय को मजबूत करने के लिए किया गया था. इस तरह, आर्थिक आधार पर आरक्षण सामाजिक न्याय की व्यवस्था को कमजोर करता है. उक्त बातें आज पटना में दो दिवसीय पोलित ब्यूरो की बैठक की समाप्ति के उपरांत संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कही.
संवाददाता सम्मेलन में राज्य सचिव कुणाल व पोलित ब्यूरो सदस्य काॅमरेड धीरेन्द्र झा व अमर भी उपस्थित थे.
उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित व न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट अल्पमत में रहे, लेकिन उनकी टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है. इन दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि 103 वें संवैधानिक संशोधन के तहत केवल सामान्य वर्गों को लाभ देने के उद्देश्य से आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया. आंकड़ों का हवाला देते हुए न्यायाधीशांे ने आगे कहा कि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारो में 80 प्रतिशत से अधिक तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हैं. आर्थिक आधार पर दिए जा रहे आरक्षण में इस तबके के लिए कोई प्रावधान नहीं किया जाना उनके प्रति भेदभाव है.
आगे कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण में 8 लाख सालाना आमदनी को आधार बनाया जाना भी एक मजाक है, क्यांेकि सामान्य वर्ग के जो वाकई गरीब हैं, उनकी भी यह हकमारी है. इसका वास्तविक फायदा संपन्न वर्ग ही उठा रहा है. अतः हम और भी बड़े संवैधानिक बेंच का गठन करके इस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि अब जब आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत बढ़ गई है तो राज्य सरकारों को वंचित समुदाय के आरक्षण के दायरे को बढ़ाने के लिए विचार करना चाहिए.
बक्सर में आयोजित सनातन समागम का आयोजन धर्म के नाम पर भाजपा-आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति का ही एक हथकंडा है. इस आयोजन में भाजपा शासित राज्यों के कई मुख्यमंत्री और भाजपाई विचार वाले कुछेक राज्यपाल भी शामिल हो रहे हैं. संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की भागीदारी कहीं से उचित नहीं है. खबर है कि शोभा यात्रा भी निकाली जाएगी. इसके जरिए भाजपा व आरएसएस बिहार में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. यह बेहद चिंतनीय है और इसके प्रति हम सबको सावधान रहना होगा.
बिहार में महागठबंधन सरकार से एक नई उम्मीद जगी, लेकिन सरकार आम लोगों को लगातार निराश ही कर रही है. शिक्षकों की बहाली पर अब तक किसी भी प्रकार की पहलकदमी नहीं उठाया जाना बेहद चिंताजनक है. इसके खिलाफ युवाओं में आक्रोश पनप रहा है. भाजपा-जदयू सरकार की तर्ज पर पुलिस दमन बदस्तूर जारी है. बिना वैकल्पिक आवास की व्यवस्था किए गरीबों को नहीं उजाड़े जाने जैसे वक्तव्यों के बावजूद जगह-जगह गरीबों की झोपड़ियां पर बुलडोजर चल रहे हैं. सांप्रदायिक उन्माद की राजनीति जारी है. बिहार विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में भी जनता की नाराजगी दिखी है. महागठबंधन सरकार को इसके प्रति गंभीरता दिखलानी चाहिए और जनता से किए वादों की दिशा में ठोस पहलकदमी लेनी होगी.
भाकपा-माले का 11 वां महाधिवेशन पटना में 15-20 फरवरी तक आयोजित होगा. 15 फरवरी को गांधी मैदान में लोकतंत्र बचाओ- देश बचाओ रैली होगी. पूरी पार्टी कतार पार्टी महाधिवेशन में उतर चुकी है.
पटना से संजय कुमार मुनचुन की रिपोर्ट