द एचडी न्यूज डेस्क : बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में जदयू और भाजपा के बीच सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. गठबंधन की गांठ ढीली पड़ती नजर आ रही है. ‘छोटे भाई’ से ‘बड़े भाई’ की भूमिका में आई बीजेपी के नेता पूरी तरह पत्ते नहीं खोल रहे है, लेकिन पार्टी की बैठकों में ये अपने दिल की बात कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. इस बात का संकेत बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने औरंगाबाद में आयोजित भाजयुमो की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दिया. बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं के समक्ष गठबंधन की मजबूरियां गिनाई.
दरअसल, हाल में ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए-2 की सरकार में दो साल बाद जदयू भी शामिल हो गई. आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बन गए हैं. तब लगा कि जदयू-बीजेपी के गठबंधन की गांठ अब मजबूत हो रही है. आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने पर नीतीश कुमार ने ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. फिर भी जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश के विचार केंद्र से अलग हैं.
भाजयुमो की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि हम बिहार में गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. जबकि अन्य राज्यों में बीजेपी स्वतंत्र काम काम करती है, चाहे वो यूपी हो या फिर एमपी. इन राज्यों में बीजेपी चीजों को स्थापित करती है. उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक है कि जब नेतृत्व आपका होता है तब चीजें आसान हो जाती हैं. लेकिन बिहार में हम लोगों के लिए बहुत चुनौती है. बिहार में काम करना, बिहार की सरकार के साथ काम करना आसान नहीं है क्योंकि चार-चार विचार धाराएं एक साथ लड़ती हैं.
74 सीटें जीती फिर भी हमने मुख्यमंत्री जदयू को दिया – सम्राट
मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार में जदयू, हम, वीआईपी और बीजेपी यानी चार विचारधाराओं के गठबंधन की सरकार चल रही है. ऐसी परिस्थिति में बहुत सी चीजों को सहना भी पड़ता है. उन्होंने कहा कि गठबंधन के नेतृत्व में नीतीश जी आज 43 सीट जीतकर आए और बीजेपी ने 74 सीटें जीती फिर भी हमने मुख्यमंत्री जदयू को दिया, नीतीश कुमार को हमने मुख्यमंत्री माना. ये कोई नई बात नहीं है, जब नीतीश कुमार 2000 में 37 सीट जीतकर आए थे तब बीजेपी 68 सीटें जीती फिर भी इस पार्टी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री माना क्योंकि पार्टी को पूरी तरह से समूह बनाने की जरूरत थी.
संजय कुमार मुचनुन की रिपोर्ट