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झारखंड में अबुआ राज के ‘बबुआ’ के 25 माह के कारनामे

Bj Bikash
Last updated: 28th January 2022 2:35 pm
By Bj Bikash
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13 Min Read
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रांची : झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के 25 माह के कार्यकाल में कार्य नहीं एक से बढ़कर एक कारनामे हुए हैं. जल, जंगल और जमीन के नारे की आड़ में सत्ता पर काबिज होने के बाद वे इन्हीं का सौदा कर रहे हैं. राज्य में बालू, पत्थर, कोयला व खनिज पदार्थों, जंगल कटाई का अवैध धंधा खुलेआम चल रहा है. यह सारा काम राज्य के एक परिवार के संरक्षण में हो रहा है.

सरकार बनने के बाद शुरुआत में सत्ताधारी परिवार में भाई-भाई के बीच तनातनी की खबरें आती रहती थीं. ये खबरें अब कुछ समय से आना बंद हो गई हैं. इसके पीछे का कारण है काम में बंटवारा. संथाल परगना में बालू व पत्थर का अवैध धंधा एक भाई के जिम्मे आ गया है, वहीं कोयले का अवैध काम दूसरे भाई के संरक्षण में चल रहा है. ये अवैध काम पूरी तरह से संगठित रूप से चल रहा है. पुलिस प्रशासन को भी इस काम में लगाया गया है. हर जगह इन दोनों के आदमियों की अनुमति के बिना कोई भी काम नहीं कर सकता है. चाहे किसी के पास सरकारी अनुमति के रूप में लाइसेंस ही क्यों न हो.

झामुमो के विधायक ही कई बार अवैध खनन, पत्थरों की ढुलाई के खिलाफ बोलते रहे हैं. अखबारों में भी अवैध खनन, बालू-पत्थर की ढुलाई के खिलाफ समय समय पर खबरें प्रकाशित होती रहती हैं. कोर्ट की फटकार का भी असर नहीं हो रहा है. सरकार की ओर से इन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया गया. रोके भी तो कौन? कहावत है न – सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का. जो काम सरकार की सरपरस्ती में चल रहा हो, वह रूक ही नहीं सकता. 25 माह में लूट इतनी कि जिसे एक प्रेस कांफ्रेस के माध्यम से लोगों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है. इसलिए पांच प्रमंडलों की लूट कथा को प्रमंडलवार उद्भेदन किया जाएगा. इस बार सरकारी संरक्षण में संथाल परगना और कोल्हान में हो रही लूट के बारे में आपके माध्यम से जनता तक पहुंचाने का प्रयास होगा.

बालू घाटों की बंदोबस्ती

वर्तमान सरकार में बालू घाटों की नीलामी के मामले में भी काफी बड़ा घोटाला किया गया है. वर्ष 2019 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में राज्य विभिन्न जिलों में अवस्थित बालू घाटों के संबंध में एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगे गए थे और पूरी प्रक्रिया के उपरांत सफल कंपनियों तथा व्यक्तियों के विषय में निर्णय भी लिया जा चुका था. इस बीच सरकार बदल गयी. प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद संबंधित पट्टों का निष्पादन करने के बजाए सभी मामलों को लंबित रखा गया. इसके साथ ही ज्यादातर पार्टियों को उनकी ईएमडी की राशि वापस कर दी गई. 25 माह बीत जाने के बाद भी स्थिति यथावत बनी हुई है. ताकि बालू का अवैध उठाव हो सके. बालू माफियाओं ने तो नदियों में बने पुलों को भी बालू हटाकर कमजोर कर दिया है. जिसका उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिला. सरकार नहीं चेती तो आनेवाले दिनों में और पुल गिरेंगे. दुमका (शिकारीपाड़ा), जामा-रामगढ़ में भी अवैध बालू का उत्खनन जोरों पर है. जामा के भूरभूरी नदी से रोजाना 20 लाख रुपए से ज्यादा की बालू सरकार के संरक्षण में बाहर भेजी जा रही है.

अवैध खनन कर झारखंड के पहाड़ों को किया जा रहा है समाप्त

झारखंड की पहचान व सौंदर्य यहां के पहाड़-पर्वत हैं. हेमंत सरकार की सरपरस्ती में झारखंड से पत्थरों का अवैध धंधा उफान पर है. संथाल परगना में तो माफिया राज चल रहा है. यह बात उच्च न्यायालय को भी कहनी पड़ी. खदान हो या रेलवे साइंडिग पर ढुलाई, बिना दुमका के जनप्रतिनिधि व उनके गुर्गों की अनुमति के कोई काम नहीं हो सकता है. दुमका के जन प्रतिनिधि ग्रैंड माइनिंग कंपनी के जरीए शिकारीपाड़ा प्रखंड में अवैध खनन व क्रेशर चलाकर जाली कागजात के जरीए रेलवे साइडिंग के माध्यम से 100 करोड़ रुपए के पत्थर ढोने की खबरें अखबारों में आयीं. हमारे समय में मेसर्स ग्रैंड माइनिंग कंपनी के द्वारा पाकुड़, देवघर व बोकारो जिले में बड़े पैमाने पर पत्थर का अवैध उत्खनन कर बांग्लादेश भेजने की जांच की गयी. जांच में अवैध उत्खनन का मामले सही पाया गया.

हेमंत सरकार के आने के बाद उच्च न्यायालय में फिर से मामला गया. न्यायालय के आदेश के आलोक में अर्थदंड की राशि पहले 11 करोड़ बाद में आठ करोड़ रुपए निर्धारित हुई. साथ ही उनकी माइनिंग को रद्द किए जाने के संबंध में अंतिम नोटिस जारी की गई थी. न्यायालय द्वारा सरकार को आदेश दिया गया कि 15 दिनों के अंदर सुनवाई की तिथि निर्धारित कर कार्रवाई करे. लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस है. जानकारी के अनुसार उपायुक्त पर इस राशि को शून्य करने का दबाव है. दूसरी बात जब दंड की राशि बकाया है, तो कैसे इस कंपनी को नये चालान जारी हो रहे हैं.

अभी पाकुड़ के गोलपुर मौजा, पाकुरिया प्रखंड में 100 एकड़ से अधिक क्षेत्र में ग्रैंड माइनिंग कंपनी के द्वारा खनन किया जाता है. कंपनी ने अगस्त से अक्टूबर में अवैध रूप से पत्थर ढुलाई और प्रेषण रेलवे द्वारा पीनर गठिया साइडिंग से लगभग पांच लाख टन बिना माइनिंग चालान के भेजा गया है. इससे राज्य सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ है. जनप्रतिनिधि के गुर्गों की अनुमति के बगैर यहां कोई काम नहीं किया जा सकता है. दुमका जिले में जितने रेलवे साइडिंग हैं, उस साइडिंग से माल भेजने के लिए स्थानीय विधायक के गुर्गों की अनुमति के बिना कोई ढुलाई नहीं हो सकती है. इन लोगों ने दो नयी कंपनी प्रगति इंफ्रा (पीडीटीआई) व कौशल किशोर सिंह (केकेएस) बनाई है. इन्हीं दो कंपनी के नाम से इंडेंट करना होता है, नहीं तो प्रेषण (ढुलाई) नहीं होगा. रेलवे के प्रेषण पंजी से भी इस बात की पुष्टि की जा सकती है.

दुमका समेत पूरे संथाल परगना में अवैध पासिंग जोन बनाया गया है. अवैध गिट्टी, बालू, कोयला लदे ट्रकों से 4500 रुपए वसूलने के बाद ही दुमका से बाहर जाने दिया जा रहा है. साहेबगंज में मुख्यमंत्री जी के विधायक प्रतिनिधि द्वारा गंगा नदी के जरीए अवैध रूप से पत्थर-बालू का ट्रांसपोर्टेशन धड़ल्ले से किया जा रहा है. इस विधायक प्रतिनिधि का रसूख इतना है कि साहेबगंज में किसी जांच के लिए यदि कोई पदाधिकारी प्रवेश करना चाहता है, तो पहले विधायक प्रतिनिधि को जानकारी देनी होती है.

कोयले की तस्करी में हाथ काले

हेमंत सरकार के कोयले के काले कारोबार में भी हाथ काले हैं. कोयले में माफियाओं का ऐसा नियंत्रण है कि राज्य में सरकारी कंपनियों को भी कोयला नहीं निकालने दिया जा रहा है. कोल इंडिया के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने भी झारखंड में हो रहे कोयला चोरी पर चिंता जताते हुए इसपर अंकुश लगाने की बात कही. उन्हें कहना पड़ा कि कोयला चोरी से सरकार और कंपनी को नुकसान हो रहा है.

दुमका के कल्याणपुर और बादलपुर में अवैध कोयले के कारोबार की जानकारी हर किसी को है. मुख्यमंत्री जी के करीबी मो कलाम, कलमुद्दीन अंसारी शिकारीपाड़ा में करोड़ो रुपये के अवैध कोयले का काला कारोबार कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि प्रतिदिन आठ करोड़ रुपये से ज्यादा का कोयले का उत्खनन किया जा रहा है. इस कोयले को अवैध रूप से बिहार, बंगाल समेत नेपाल तक भेजा जा रहा है. झारखंड में हो रहे अवैध उत्खनन पर मा0 उच्च न्यायालय ने तो यहां तक टिप्पणी की कि झारखंड के सारे मिनरल्स निकाल कर बेच देंगे, तो न जंगल बचेगा, न जल बचेगा और न ही जलवायु बचेगी.

धड़ल्ले से हो रही है पशु तस्करी

दुमका समेत पूरे संथाल परगना में खुलेआम पशु तस्करी की जा रही है. झामुमो के बड़े-बड़े नेता इस धंधे में संलिप्त हैं. संथाल परगना के पशुओं की बांग्लादेश तक तस्करी हो रही है. खुफिया विभाग की मानें, तो संथाल में सबसे ज्यादा पशुओं का अवैध धंधा हो रहा है. सरकार के संज्ञान में यह मामले लाये जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. हाल ही में दुमका के हिंदू संगठनों के विरोध करने पर उनपर झूठे मुकदमे कर दिए गए हैं.

जंगल काटने में आगे

जल, जंगल और जमीन को केवल नारा मानने वाली हेमंत सरकार के राज में जंगलों की भी अवैध कटाई जोरों पर है. लॉकडाउन के समय ही आठ जिलों में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई. रांची, चाईबासा का सारंडा जंगल, हजारीबाग, बोकारो, पलामू, जामताड़ा, दुमका व अन्य जिलों में हजारों पेड़ काट कर माफियाओं के द्वारा बेच दिये गये. जंगलों की दुहाई देनेवाले अब अपने बिल में छिप गये हैं. हाल ही में आये भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में वन व झाड़ियों का घनत्व पिछले दो साल में घटा है.

कोलहान शाह ब्रदर्श का मामला

हमारी सरकार के समय कड़ाई करके पुराने अवैध खनन मामले में दंड के रूप में 4000-4500 करोड़ रुपए की राशि सरकारी खजाने में जमा करायी गयी. वहीं वर्तमान सरकार तो उच्च न्यायालय के आदेश की भी धज्जियां उड़ाने से भी परहेज नहीं कर रही है. ताजा मामला शाह ब्रदर्श का है. शाह ब्रदर्स के मामले तो माननीय उच्च न्यायालय डिविजन बेंच के आदेश धज्जियां उड़ाई गई. उच्च न्यायालय ने LPA No. 351 of 2018 मामले में एक अक्टूबर 2018 को दिये निर्णय के अनुसार उक्त कंपनी को 80 करोड़ रुपए जमा करने और सितंबर 2020 तक पूरी दंड राशि के 250 करोड़ जमा कर देना था. उक्त कंपनी द्वारा मेरे कार्यकाल लगभग 100 करोड़ रुपए जमा कराए गए. शर्तों पूरी नहीं करने के कारण उस कंपनी की माइनिंग लीज हमारी सरकार ने रद्द कर दी.

वर्तमान सरकार के कार्यकाल में एक अजीब घटना हुई. शाह ब्रदर्श द्वारा माइनिंग लीज रद्द किए जाने आदेश पर दोबारा मामला दायर किया गया. कोर्ट में 100 करोड़ के अलावा अन्य किस्तों के भुगतान नहीं होने की सूचना तक नहीं दी गयी. जैसे ही माननीय न्यायालय ने लीज रद्द किए जाने आदेश को समाप्त दिया, राज्य सरकार ने आनन-फानन में चालान इत्यादि निर्गत करने का आदेश दे दिया गया. सवाल यह उठता है कि सरकार ने न्यायालय से समक्ष पूरा मामला क्यों नहीं रखा. दूसरा कि एकल पीठ के निर्णय के खिलाफ सरकार अपील में क्यों नहीं गयी. दूसरी ओर न्यायालय के आदेश के अनुसार कंपनी को पहले हुई खुदाई की सामग्री ही बेचने की अनुमति थी, लेकिन कंपनी ने अवैध रूप से उत्खनन का कार्य जारी रखा. इसके संबंध में स्थानीय मीडिया में रिपोर्ट भी आई थी. भाजपा नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस के बाद झामुमो-कांग्रेस व सरकार के पाले हुए कुछ नेता बस अनर्गल और घिसे-पिटे आरोप लगाते हैं, लेकिन जो मुद्दे उठाए जाते हैं, उस पर कुछ नहीं कहते हैं. लेकिन जनता अब सब समझ चुकी है. जनता को ज्यादा दिन तक बरगलाया नहीं जा सकता है. संथाल में लोगों के बीच एक नारा अभी प्रचलित हो रहा है.

गौरी रानी की रिपोर्ट

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