द एचडी न्यूज डेस्क : कोरोना को लेकर बिहार में सियासत तेज हो गई है. आरएलएसपी के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने एक ट्वीट कर बिहार के राजनीति में हलचल मचा दी है. जी हां महागठबंधन के अटूट साथी उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल तेजस्वी के साथ हैं. यह बखूबी सबको मालूम है. लेकिन जब उनकी ही पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव कुछ मुद्दों को लेकर तेजस्वी यादव को उपेंद्र कुशवाहा का पिछलग्गू नेता बताते हैं तो कुशवाहा उसका समर्थन करते हैं.
आरएलएसपी के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने तेजस्वी को पिछलग्गू बताते हुए ट्वीट करते हैं तो सोशल मीडिया के धुरंधर खिलाड़ी कुशवाहा उसे लाइक करते हैं. आखिर इसका मतलब है क्या? क्या यह महागठबंधन के अंदर-अंदर चलने वाली सियासत का हिस्सा तो नहीं. फजल इमाम के ट्वीट को लाइक कर आखिर कुशवाहा गठबंधन के नेताओं को क्या संदेश देना चाहते हैं.
सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले कुशवाहा ने पिछलग्गू नेता वाले ट्वीट को क्यों किया लाइक
कहा जाता है कि सियासत समय का खेल है. वक्त के अनुसार साथी और दुश्मन बदलते रहते हैं. ऐसा कई बार देखा गया है लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के अभिन्न अंग रह चुके कुशवाहा चुनाव आते ही पलटी मारकर महागठबंधन का अटूट अंग बन गए थे और उन्होंने चुनाव भी महागठबंधन के साथ ही लड़ा. फिलहाल महागठबंधन के द्वारा किए गए आंदोलन में भी साथ देते रहे हैं.
सोशल मीडिया पर इन दिनों काफी एक्टिव रहने वाले उपेंद्र कुशवाहा अपने ट्विटर और फेसबुक को काफी तवज्जो देते हैं. इसी बीच जब कोटा से विद्यार्थियों को लाने पर छिड़ी सियासत में उन्होंने 2 घंटे के उपवास कार्यक्रम को बनाया और उसके बाद तेजस्वी ने भी बिहारी मजदूरों को वापस लाने को लेकर उपवास का कार्यक्रम रखा तो इस पर आरएलएसपी के राष्ट्रीय महासचिव ने तेजस्वी को पिछलग्गू नेता बताया था. आरएलएसपी के राष्ट्रीय महासचिव फजल इमाम ने ट्वीट कर लिखा था की बाअदब बामुलाहिजा : बिहार की सियासत में पिछले बनकर रह गए हैं तेजस्वी यादव! इसी ट्वीट को उपेंद्र कुशवाहा ने झट से लाइक कर दिया.
अब सवाल है कि अपने से बड़ी पार्टी के नेता और नेता प्रतिपक्ष को जब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का एक वरीय नेता पिछलग्गू बताता है तो उपेंद्र कुशवाहा उसे नसीहत देने के बजाय उसका समर्थन करते क्यों करते हैं. जानकारों का मानना है राजनीति में वक्त बहुत ही बहुमूल्य होता है. हर नेता को आने वाले विधानसभा चुनाव में अपने अपने वोट बैंक की चिंता सता रही है. एक तरफ जहां तेजस्वी यादव प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए बसों और ट्रेनों की भाड़ा देने की बात कह रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उपेंद्र कुशवाहा ने इस मसले पर सबसे पहले उपवास की सियासत शुरू कर दी. जाहिर सी बात है कि पता नहीं कब कौन सी बात जनता के दिल में कांटे की तरह फंस जाए और राजनीति चल निकले.
फिलहाल तेजस्वी यादव को अपना पिछलग्गू सुनना उपेंद्र कुशवाहा को बहुत ही अच्छा लग रहा है. जाहिर सी बात है उपेंद्र कुशवाहा की महत्वाकांक्षा को बिहार की जनता और राजनीति बखूबी जानती है. कई बार देखा गया है की तेजस्वी यादव स्वयंभू अपने को महागठबंधन का नेता घोषित करते रहे हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा से लेकर जीतनराम मांझी तक इसका विरोध करते रहे हैं. महागठबंधन के अंदर चल रही महत्वाकांक्षा की लड़ाई कई दफा खुलकर सामने आ चुका है.