साहिबगंज : बिहार और झारखंड ही नहीं देश के हर हिस्से में सूर्योपासना का महापर्व छठ धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व में बांस या पीतल के सूप में भगवान भास्कर को अघ्र्य अर्पित किया जाता है. अब एक बात और जान लीजिए, सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि साहिबगंज में बने बांस के सूप से बिहार, यूपी, दिल्ली और बंगाल के भी श्रद्धालु पूजा करते हैं. यह सूप यहां के मल्लिक, संथाल व पहाड़िया समुदाय के लोग बनाते हैं. उनको गंतव्य तक मुस्लिम समुदाय के कारोबारी भेजते हैं. यहां बने सूप बंगाल के मालदा, कोलकाता, बिहार के भागलपुर, मुंगेर, गया, पटना, छपरा और आरा के अलावा झारखंड के कई जिलों में भेजे जाते हैं.
एक सदी से ज्यादा समय से चल रहा यह कारोबार
यूं तो यह कारोबार साल भर चलता है, लेकिन महापर्व छठ के समय इसमें तेजी आती है. आधा दर्जन मुस्लिम कारोबारी सूप-डाला का थोक व्यापार करते हैं. पर्व के दौरान करीब दो लाख सूप व डाला यहां से अन्य जगहों पर जाते हैं। करीब एक करोड़ रुपए से अधिक का इसका कारोबार होता है. सूप-डाला के थोक विक्रेता शहर के एलसी रोड निवासी एजाजुल इस्लाम उर्फ मुन्ना बताते हैं कि हमारे दादा मोहम्मद सुलेमान अली ने 1920 में यह काम शुरू किया था. 1956 में दादा की मृत्यु के बाद हमारे पिता इमामुद्दीन ने इस कारोबार को संभाला. 1978 में पिता की मृत्यु के बाद हमने इस काम को आगे बढ़ाया. साहिबगंज के बांझी, मरचो, मोतीपहाड़, बोआरीजोर, पंचकठिया, कुंडली, इलाकी, संजोरी, बरमसिया, सनमौजी व अन्य पहाड़ी इलाकों में लोग इस सीजन में खूब सूप बनाते हैं. इसे बनाने में महिलाओं की संख्या अधिक है. गांवों में बना सूप व डाला ग्रामीण उनके यहां बेचते हैं। हम इसकी मार्केटिंग करते हैं.
बांस की उपलब्धता के कारण सूप के कारोबार को लगे पंख
एक और कारोबारी मोहम्मद अख्तर अली ने बताया कि 1960 से यह काम उनका परिवार कर रहा है. यहां से सूप झारखंड, बिहार बंगाल और यूपी के बनारस समेत दिल्ली तक भेजते हैं. यहां के बने सूप की बिनाई अच्छी होती है. कई गांव में यह कुटीर उद्योग बन गया है. कच्चा माल यहां आसानी से सुलभ होने से यहां बना सूप अन्य जगहों की तुलना में सस्ता पड़ता है.
तीन लोग दिनभर में तैयार करते 10 सूप
टाकीज फील्ड रोड निवासी माला देवी कहती हैं कि 10 सूप तैयार करने में तीन लोगों को दिनभर लगता है. हर रोज शाम तक उसे महाजन तक पहुंचा देती हूं. एक सूप की कीमत 25 से 30 रुपए के बीच आराम से मिल जाती है। यहीं के राजू मल्लिक कहते हैं कि मौसम खराब रहा तो दस सूप तीन लोग एक दिन में नहीं बना पाते. यह बड़ा मशक्कत का काम है. विमली देवी कहती हैं कि हम पूरी लगन से सूप बनाते हैं. साहिबगंज के बने सूप की बिनाई सटीक होती है.