रांची : झारखंड के वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा है कि संसद में पेश 2022-23 के आम बजट से जनता को घोर निराशा हुई है. केंद्रीय आम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा कि बजट काल्पनिक साहित्य जैसा है. पहले दो करोड़ नौकरियों की बात थी, अब 60 लाख बजट में बात की गयी है, जबकि हकीकत है कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों ने 2020 में 6.4 करोड़ लोग अत्यंत गरीबी में ढकेल दिया. बहुत हो हल्ला था कि कोरोना के बाद ऐसा बजट होगा जो देश का काया कल्प हो जाएगा, सरकार के एक सदस्य होने के नाते हम कह सकते हैं कि आम लोग और गरीब होंगे. महंगाई से त्रस्त जनता को राहत कैसे मिले, किसानों की आय दुगुनी कैसे होगी सरकार ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई दी है.
वित्त मंत्री ने कहा है कि सच्चाई यह है कि सालाना प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में गिरावट आई है. वर्ष 2020-21 में प्रति व्यक्ति आय 17589 से गिरकर 16975 रुपए हो गया है. अमृत काल 2022-23 में जहां 80 करोड़ लोग सरकारी मुफ्त अनाज पर आश्रित है, उनको गरीबी से उठाने का कोई स्पष्ट विजन नहीं दिखा. आर्थिक सर्वे के अनुसार सरकार की आय में जबरदस्त उछाल देखा गया. 2020 की तुलना में 64.9 प्रतिशत राजस्व में बढ़ोत्तरी हुई, जबकि ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार 2021 के दौरान भारत में 84 प्रतिशत परिवारों की आय घट गई.
उन्होंने कहा कि रोबस्ट टैक्स संग्रहण काल के बावजूद आयकर दाता को कोई राहत नहीं दी गयी है. एनपीएस में वर्तमान में सरकारी कर्मचारी को अपने बेसिक वेतन प्लस डीए पर 10 प्रतिशत राशि जमा करने की सीमा को 14 प्रतिशत तक जमा करने की मामूली राहत है. उन्होंने कहा कि हेल्ड इंश्योरेंस पॉलिस प्रीमियम स्टैंडर्ड डिडक्शन में कटौती सीमा होम लोन में प्रिंसिपल पेमेंट और ब्याज भुगतान पर राहत की बड़ी उम्मीद थी परंतु सबको निराशा हुई है.
कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि बजट में कहा गया है कि हीरे के गहने सस्ते होंगे,इससे सरकार का विजन स्पष्ट होता है. बजट सिर्फ आय-व्यय का ब्योरा है आमदनी कहां से होगी यह नहीं बताया गया है. जून 2022 में राज्यों को दिए जाने वाले जीएसटी क्षतिपूर्ति के मियाद पूरे होने वाले हैं, सभी राज्यों ने इसे अगले पांच वर्ष तक बढ़ाने का अनुरोध वित्तमंत्री सीतारमण से कहा था और ऐसा पत्र रामेश्वर उरांव ने लिखा भी था लेकिन ऐसा नहीं करके झारखंड जैसे प्रदेश के साथ नाइंसाफी हुई है. बादल ने कहा कि जब जब यूपी में चुनाव होते हैं भाजपा को गंगा याद आती है.
प्रदेश कांग्रेस के वरीष्ठ नेता आलोक कुमार दूबे ने कहा कि गंगा किनारे बसे किसानों की याद केंद्र सरकार को चुनाव वर्ष में आयी. हालांकि पिछले चुनावी के बजट में किसानों की आय 2022 तक डबल करने की बात वर्ष 2017-18 के बजट में कही गई थी, उसका कोई अपडेट बजट भाषण में नहीं मिला. जबकि कैपेक्स की स्थिति आठ महीने में 2.74 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके, बाकी राशि चार महीने में खर्च किया जाना है.
प्रदेश कांग्रेस नेता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि बजट 2022-23 में चुनावी राज्यों का विशेष ध्यान रखा गया है. महामारी से मार खायी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने जैसी कोई बात नहीं है. हेल्दी रेवेन्यू के बावजूद जनता को कोई राहत नहीं दी गई. हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमिमय पर उम्मीद थी कि डिडक्शन सीमा बढ़ेगी. होम बायर्स को टैक्स में छूट देकर रियल्टी सेक्टर को बढ़ावा देने की बड़ी उम्मीद थी. पर ऐसा कुछ भी नहीं है.
कांग्रेस नेता व आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि केंद्र सरकार गरीबी नहीं गरीबों को मिटाने पर तुली हुई है, मेट्रो ट्रेन कहां गया, स्कूल के बच्चों की पढ़ाई की चिंता अब हो रही है. रेलवे निजीकरण की बढ़ा है, अब रेलवे में पीपीपी मॉडल से विकास होगा. जबकि तीन साल में 400 नई वंदे भारत ट्रेन की घोषणा की गई, लेकिन रेलवे के विकास की कोई रूपरेखा पेश नहीं की गई. रोजगार कैसे बढ़ेगा, बजट में कोई स्पष्टता नहीं है. आयकरदाता आयकर दे रहा है, सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी हो रही है, महंगाई से त्रस्त जनता को कोई टैक्स रिलीफ नहीं दिया गया. बजट से जनता को घोर निराशा हुई है. इन्फ्रास्ट्रक्सर पर फंडिंग कैसे होगी, बजट में इसकी कोई स्पष्टता नहीं है. निजी निवेश जो यूपीए काल में 36 प्रतिशत जीडीपी की तुलना में होता, वह कमजोर है और 27 प्रतिशत पर रूका हुआ है. वेतनभोगी कर्मचारियों को टैक्स में डिडक्शन के सहारे बचत की उम्मीद थी, परंतु ऐसा कुछ भी बजट में नहीं है. बजट में आय के साधन पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई.
कांग्रेस नेता डॉ. राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर जिसपर सरकार का बहुत धमाका रहा, परंतु सच्चाई हिक 1673 इंफ्रा प्रोजेक्टस में से 745 प्रोजेक्ट में विलंब होने के कारण उनकी लागत 4.38 लाख करोड़ बढ़ गई है. सरकार को अपनी खर्च बढ़ाने की जरूरत है. बजट में एक्ट्रेस्ड सेक्टर, एमएसएमईएस, होटल, ऑटो और असंगठित क्षेत्र स्मॉल बिजनेस को महामारी में जो आर्थिक नुकसान हुआ, उसकी रिकवरी सपोर्ट के लिए कोई विजन बजट में नहीं दिखा.
गौरी रानी की रिपोर्ट