नई दिल्ली : राजस्थान में बगावती तेवर दिखाने वाले सचिन पायलट को 14 जुलाई को प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलना सचिन पायलट को भारी पड़ा और कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया कि पायलट ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा है. इस पूरे सियासी खेल के बाद सचिन पायलट ने अपना पहला इंटरव्यू दिया और इंडिया टुडे मैग्जीन से खुलकर बात की. सचिन ने कहा है कि वो भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में नहीं हैं और ना ही बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं.
आप मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खफा क्यों हैं?
मैं उनसे नाराज नहीं हूं और ना ही किसी तरह की कोई स्पेशल शक्ति मांग रहा हूं. मैं बस इतना चाहता हूं कि कांग्रेस की सरकार राजस्थान में लोगों को किए हुए वादे को पूरा करे जो चुनाव के दौरान किए गए थे. हमने चुनाव में वसुंधरा राजे की सरकार के खिलाफ प्रचार किया, जिसमें अवैध माइनिंग का मसला था लेकिन सत्ता में आने के बाद अशोक गहलोत जी ने कुछ नहीं किया और उसी रास्ते पर चल पड़े. पिछले साल राजस्थान हाई कोर्ट ने एक पुराने फैसले को पलटते हुए वसुंधरा राजे को बंगला खाली करने को कहा, लेकिन अशोक गहलोत सरकार ने फैसले पर अमल करने की बजाय इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी.
अशोक गहलोत एक तरफ तो पूर्व मुख्यमंत्री की मदद कर रहे हैं और दूसरी तरफ मुझे और मेरे समर्थकों को राजस्थान के विकास में काम करने की जगह नहीं दे रहे हैं. अफसरों को कहा गया कि मेरे आदेश ना मानें, मुझे फाइलें नहीं भेजी जा रही थीं. महीनों तक विधायक दल या कैबिनेट की बैठक नहीं होती है. ऐसे पद का क्या फायदा अगर मैं लोगों को किया गया वादा ही ना पूरा कर सकूं.
आपने पार्टी के स्तर पर इन मुद्दों को क्यों नहीं उठाया?
मैंने कई बार इन मसलों को सभी के सामने रखा है. मैंने प्रभारी अविनाश पांडे और अन्य वरिष्ठ नेताओं से बात की, खुद अशोक गहलोत से इस मसले पर बात की है. लेकिन जब मंत्रियों और विधायकों की बैठक ही नहीं होती थी, तो बहस और बातचीत की जगह ही नहीं बची थी.
अशोक गहलोत के द्वारा जब विधायक दल की बैठक बुलाई गई, आप नहीं गए. वहां पर भी तो मुद्दों को उठाया जा सकता था?
मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंची है. राज्य की पुलिस ने मुझे राजद्रोह का नोटिस थमा दिया. अगर आपको याद हो तो 2019 के लोकसभा चुनाव में हम लोग ऐसे कानून को ही हटाने की बात कर रहे थे. और यहां कांग्रेस की ही एक सरकार अपने ही मंत्री को इसके तहत नोटिस थमा रही है. मैंने जो कदम उठाया वो अन्याय के खिलाफ था. अगर व्हिप की बात हो तो वो सिर्फ विधानसभा के सदन में काम आता है, मुख्यमंत्री ने ये बैठक अपने घर में बुलाई थी ना कि पार्टी के दफ्तर में.
अशोक गहलोत का आरोप है कि आप बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की कोशिश कर रहे थे?
इन दावों में कुछ भी सच नहीं है. मैंने राजस्थान में कांग्रेस को जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की है, मैं क्यों पार्टी के खिलाफ काम करूंगा?
अब जब आपको हटा दिया गया है तो आप कांग्रेस में किस तरह आगे बढ़ेंगे?
जरा माहौल को शांत होने दीजिए..अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं. मैं अभी भी कांग्रेस कार्यकर्ता हूं. मुझे अपने समर्थकों के साथ अपने कदम पर चर्चा करनी है.
क्या आप बीजेपी में शामिल होंगे? बीजेपी कह रही है कि आपके लिए दरवाजे खुले हैं.
मैं पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि भाजपा ज्वाइन नहीं कर रहा हूं. मैं अभी यही कहना चाहता हूं कि मैं अपने लोगों के लिए काम करता रहूंगा.
क्या आप भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं? क्या आपने ओम माथुर या ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की?
मैं किसी बीजेपी नेता से नहीं मिला हूं. पिछले 6 महीने से ज्योतिरादित्य सिंघिया से नहीं मिला हूं और ना ही ओम माथुर से मिला हूं.
आपके लिए मुख्यमंत्री बनना इतना जरूरी क्यों है? आपकी पार्टी का कहना है कि इतनी कम उम्र में आपको काफी पद दिए गए हैं, क्या आप महत्वाकांक्षी हो रहे हैं?
सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की बात नहीं है, मैंने मुख्यमंत्री पद की बात तब की थी जब मैंने 2018 में पार्टी की जीत की अगुवाई की थी. मेरे पास सही तर्क थे. जब मैंने अध्यक्ष पद संभाला तो पार्टी 200 में से 21 सीटों पर आ गई थी. पांच साल के लिए मैंने काम किया और गहलोत जी ने एक शब्द भी नहीं बोला. लेकिन चुनाव में जीत के तुरंत बाद गहलोत जी ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक दिया. अनुभव के मसले पर, उनका क्या अनुभव है?
2018 से पहले वो दो बार मुख्यमंत्री बने हैं, दो चुनाव में उनकी अगुवाई में पार्टी 56 और 26 पर आ पहुंची. इसके बाद भी उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया. हां, मैंने राहुल गांधी का फैसला स्वीकारा और वो सीएम बने. राहुल के कहने पर मैं डिप्टी सीएम भी बन गया. राहुल गांधी ने सत्ता का बराबर बंटवारा करने की बात कही थी, लेकिन गहलोत जी ने मुझे साइडलाइन करना शुरू कर दिया.