द एचडी न्यूज डेस्क : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’. नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं. अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं. मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो. पर, आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है. ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है. जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा. बिहार से 100 रुपए ज्यादा. सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है. यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे.
इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई पांच गुना बढ़ी है. नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी. आज 43,822 रुपए है. यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए.
इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई चार गुना से ज्यादा बढ़ी है. लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल करीब दोगुना कमाई करता है. झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है. वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए.
देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है. 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है. इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है.
2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5 फीसदी और शहरों में 6.4 फीसदी थी. अब यहां के गांवों में 10.2 फीसदी और शहरों में 10.5 फीसदी बेरोजगारी दर है. बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है. बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90 फीसदी आबादी आज भी गांवों में ही रहती है.