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कांग्रेस की ओर से 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. अनिरूद्ध महतो के आवास पर सम्मान समारोह का आयोजन

Bj Bikash
Last updated: 14th August 2021 4:22 pm
By Bj Bikash
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8 Min Read
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रांची : झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आज रांची में महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय अनिरूद्ध महतो के चुटिया स्थित आवास पर सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. स्वतंत्रता सेनानी अनिरुद्ध महतो की 89 वर्षीय धर्मपत्नी मनेर देवी को शॉल, बुके एवं तिरंगा झंडा देकर सम्मानित किया. स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय मोतीलाल अमेठिया के पुत्र राकेश सिंह अमेठिया, स्वतंत्रता सेनानी विमल कुमार दास गुप्ता के पौत्र अनुराग दास गुप्ता,स्वतंत्रता सेनानी गोविंद देव ब्रह्मचारी के पौत्र कुणाल सिंह एवं स्वर्गीय नागेश्वर प्रसाद के पौत्र रवि दत्त को शाल, तिरंगा झंडा एवं बुके देकर सम्मानित किया. महान स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल अमेठिया की 90 वर्षीय वयोवृद्ध पत्नी चलने फिरने में असमर्थ सौरभ मंजरी सिंह को लोआडीह स्थित उनके आवास पहुंचकर सम्मानित किया एवं स्वतंत्रता संग्राम की कहानी सुनी. इसके साथ ही साथ अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को भी सम्मानित किया गया.

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव, डॉ. राजेश गुप्ता छोटू, राखी कौर और अरविन्द कुमार ने स्वतंत्रता सेनानियों के घर जाकर उन्हें शॉल और बुके देकर सम्मानित किया. इसके पूर्व चुटिया स्थित स्वर्गीय अनिरुद्ध महतो के आवास पर आयोजित सम्मान समारोह में दीप प्रज्वलित कर एवं चित्र तथा ताम्रपत्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई एवं वन्दे मातरम एवं भारत माता की जयघोष किए गए.

प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान झारखंड के महान स्वतंत्रता सेनानियों ने बढ़चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लिया. इन्हीं में से एक थे अनिरुद्ध महतो एवं नागेश्वर प्रसाद दोनों महान विभूतियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पूरा यौवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया. अंग्रेजी हुकूमत की तमाम बंदिशों के बावजूद उन्होंने अपने दो-तीन साथियों के लोहरदगा के बगड़ू पहाड़ स्थित घने जंगल में प्रेस की स्थापना की. उस प्रिंटिंग प्रेस का वजन करीब 500 से 600 किलोग्राम का बताया जाता था. वे इस हस्त लिखित प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से लोगों को क्रांति के लिए जागरूक करते थे.

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के क्रम में इन्होंने अपने युवा साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ कई प्रदर्शनों में मिला और इतिहास में काकोरी कांड की जैसी दूसरी घटना को अंजाम देते हुए अंग्रेजी सरकार के खजाने और हथियार को लूटने का काम किया. इस घटना को रांची-डालटनगंज मार्ग पर अंजाम दिया. आजादी के आंदोलन के दौरान नागेश्वर बाबू का एक अंग्रेज अधिकारी के साथ सीधी भिड़ंत हो गई. इन्होंने उनपर गोली चलाई. वह किसी तरह से बच गया, लेकिन जवाबी कार्रवाई करते हुए अंग्रेज अधिकारी ने भी गोली चलाई, जो उनके पैर में लगी और जीवन पर्यंत फंसी रही.

प्रदेश प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि 13 अगस्त 1942 के दिन ही महान स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल अमेठिया को आजादी की आवाज बुलंद करने पर गिरफ्तार कर लिया गया. तत्कालीन कमिश्नर ने उन्हें 30 कोड़ा मारने की सजा सुनायी थी. इस आदेश पर उन्हें लकड़ी के पोल में रस्सी से बांधकर और ऊपर जूट का पतला बोरा बांधकर उनकी इतनी बेदर्दी से पिटाई की गई उनकी तबीयत बिगड़ गई. अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों से इतनी भयभीत थी कि इन्हें एक स्थान पर ज्यादा दिन रखती नहीं थी. कभी उन्हें रांची जेल में रखा गया, तो कभी पटना, कभी हजारीबाग तो कभी गोरखपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया जाता रहा.

प्रदेश प्रवक्ता डॉ. राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि सात और आठ अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव पारित हुआ. उस वक्त सूचना तकनीक आज की तरह से सशक्त नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद नौ अगस्त 1942 से पूरे देश में क्रांति की लहर दौड़ गई है. ब्रिटिश हुकूमत से बिना खौफ खाए स्वतंत्रता के दिवानों ने सरकारी कार्यालयों में तिरंगा फहराया, जुलूस, प्रदर्शन और सभाएं की. कई स्थानों पर आगजनी की घटनाएं हुई. टेलीग्राम और टेलीफोन लाइन तथा बिजली के तार को काट कर अंग्रेजी शासन को खुली चुनौती दी गई. स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे अहम लड़ाई में राज्य में कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने गोलियां चलाई. इसमें कई स्वतंत्रता सेनानियां की जान चली गई. वहीं आजादी के दिवाने सैकड़ों सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में दी गई यातनाओं से भी कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी कुर्बानी दे दी.

इस दौरान अनेक स्थानों पर आंदोलनकारियों ने समानांतर शासन स्थापित करने की कोशिश की.प्रदेश प्रवक्ताओं ने कहा कि आजादी की लड़ाई के दौरान रांची में करीब साढ़े तीन साल (30मार्च1916 से 31दिसंबर 1919) की नजरबंदी के दौरान मौलाना अबुल कलाम आजाद ने आधुनिक शिक्षा की रूपरेखा अपने मन मस्तिष्क में तय कर ली थी. रांची में नजरबंदी के रहने के दौरान मौलाना आजाद ने गरीबों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें देश के पहले शिक्षामंत्री का दायित्व मिला, तो उन्होंने देश में आधुनिक शिक्षा की बुनियाद रखी. देश में आईआईटी, आईएसएम और यूजीसी जैसे उच्च शिक्षा की बुनियाद को मजबूत करने वाले शैक्षणिक संस्थान की बुनियाद रखी.

प्रदेश प्रवक्ताओं ने कहा कि अगस्त क्रांति के दौरान झारखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए ब्रिटिश शासन की ओर से ना सिर्फ बल का प्रयोग किया गया, बल्कि निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चली गयी. इसी क्रम में जब कोडरमा के अबरख खानों में काम करने वाले मजदूरों ने झुमरी तिलैया में जुलूस निकाला, तो उन पर गोलियां चली गयी. हजारीबाग के डोमचंच में भी एक जुलूस पर गोली चलायी गई, जिसमें दो के मरने और 22 घायल होने की बात सामने आयी. टाटा में भी 30 अगस्त 1942 को मशीन गनों से गोलियां दागी गई.

संताल परगना प्रमंडल में बादलमल पहाड़िया नामक एक नौजवान युवक अपनी मां का एकमात्र पुत्र था, वह भी बड़े ही उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ा, पर फिर वह घर वापस नहीं लौट पाया. गोड्डा जेल में ही पुलिस की यातनाओं के कारण वह शहीद हो गया. एक विशेष फौजी टुकड़ी ने दुमका में भी गोलीबारी की, जिसमें त्रिगुनानंद मारे गए. इस आंदोलन के दौरान झारखंड के विभिन्न हिस्सों से दो हजार से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई.

गौरी रानी की रिपोर्ट

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