दिल्ली में कार्यरत एवं एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विकास सिंह ने कोरोना महामारी से बचाव एवं उसके रोकथाम के संबंध में कहा कि कोरोना जैसी महामारियों से बचाव के लिए एवं उस से ग्रसित रोगियों के इलाज के लिए बिहार सरकार की स्वास्थ्य सुविधाएं नाकाफी हैं. आबादी के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या बहुत ही कम है. WHO के मानकों के अनुसार प्रति एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर होना ज़रूरी है. मगर बिहार में यह अनुपात काफ़ी कम है. यहां 28 हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर हैं और एक लाख की आबादी पर एक बेड उपलब्ध है.
बिहार सरकार यह बात पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में बता चुकी है कि उसके पास जितनी ज़रूरत है उसकी तुलना में 57 फ़ीसदी डॉक्टर कम हैं और 71 फीसदी नर्सों की कमी है. जून 2019 में नीति आयोग ने स्वास्थ्य के मामलों में भारत के राज्यों की जो रैंकिंग बनाई थी, उसमें बिहार का नम्बर 21वां था. उन्होंने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बिहार में जो सरकारी डॉक्टर हैं, वो भी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई किट, एन 95 मास्क और ग्लव्स) के अभाव में सेवा देने में असमर्थता जता रहे हैं. भागलपुर के जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज, पटना के पीएमसीएच, एनएमसीएच, आईजीआईएमएस समेत कई अस्पतालों के डॉक्टरों ने इसे लेकर शिकायत की है. स्वास्थ्य विभाग, मुख्यमंत्री सहित प्रधानमंत्री तक को पत्र लिख चुके हैं. लेकिन अभी तक उनकी शिकायतें दूर नहीं हो सकी.
आज बिहार सरकार विभिन्न राज्यों में फंसे अपने मजदूरों एवं छात्र छात्राओं को वापस लाने से डर रही है उसके पीछे कहीं ना कहीं बिहार की बदतर स्वास्थ्य व्यवस्था का ही हाथ है. सरकार को यह लग रहा है यदि बाहर से मजदूर एवं छात्र आ गए तो उनके जांच एवं इलाज के लिए समुचित व्यवस्था तो बिहार में है नहीं. तो ऐसे में अगर कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ जाती है तो सरकार की बदनामी एवं किरकिरी होगी. इसी बदनामी से बचने के डर से बिहार सरकार जानबूझकर अपने छात्रों एवं मजदूरों को अन्य राज्यों से बिहार नहीं ला रही है. जबकि यूपी सरकार ने पिछले दिनों ही कोटा में फंसे 7500 छात्रों को अपने राज्य में वापस बुला लिया है.
डॉ. विकास ने बिहार सरकार से अपील की है कि इस कोरोना महामारी को एक अवसर एवं चुनौती के तौर पर उन्हें लेना चाहिए और बिहार के सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोलने के लिए शीघ्र अतिशीघ्र कदम उठाने चाहिए. मुंगेर, बांका और जमूई जैसे जिलों में स्वास्थ्य व्यवस्था बिल्कुल ध्वस्त हो चुकी है. यहां पिछले 15 सालों से सुशासन वाली सरकार ने एक भी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल नहीं खोला. साथ ही उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी पर भी सवाल खड़े किए. आबादी के अनुपात में बिहार में लगभग ढाई हजार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए लेकिन वर्तमान समय में मात्र 533 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. इस ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.