पटना:- देश इस वक्त दो चुनौतियों का सामना एक साथ कर रहा है। एक तरफ जहां कोरोना महामारी है तो दूसरी तरफ बिगड़ती अर्थव्यवस्था। मौजूदा हालात में खराब अर्थव्यवस्था और हमारे देश के किसानों एवं मजदूरों की समस्याओं को देखते हुए बिहार विधान परिषद के सदस्य सच्चिदानंद राय ने पीएमओ के जरिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ जरुरी सुझाव देते हुए अपने विचारों को साझा किया है। सच्चिदानंद राय का कहना है कि उनके विचारों को अमल में लाकर काफी हद तक किसानों एवं मजदूरों के आर्थिक हालात को बदला जा सकता है। सच्चिदानंद राय ने जो सुझाव प्रधानमंत्री से साझा किया है उसे नीचे अक्षरांश प्रस्तूत किया जा रहा है।
कोरोना लॉक डाउन की वजह से हमारे देश की आत्मा कहे जाने वाले गावों की वास्तविक स्थितियों को समझने का एक प्रयास और उससे सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण सुझाव इस प्रकार हैं :-
अभी की वर्त्तमान स्थिति में देश के समक्ष कुछ बड़े प्रश्न चुनौती बनकर खड़े हैं –
लॉक डाउन की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित आबादी कौन सी है ? इस हालात में कौन सबसे ज्यादा भुखमरी की स्थिति में है? या यूं कहें कि किसका निकट भविष्य समस्याओं से घिरा हुआ दिख रहा है? जवाब होगा दिहाड़ी मजदूर और किसान।
मेरे लिए तो यह एक प्रश्न मात्र है। परन्तु हमारी सरकार के लिए यह बहुत बड़ी समस्या है जो सुरसा की भांति देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की अधिकांश आबादी को निगल जाने को तैयार खड़ी दिख रही है I
इस विषय पर अपने विचार रखने से पूर्व अभी के वर्त्तमान हालात पर जारी तैयारियों और कोशिशों को लेकर मैं सरकार की सराहना भी करना चाहूँगा I मैं ही क्या, अभी तो वैश्विक स्तर पर भारत की छवि तथा देश के नेतृत्व को पूरी दुनिया ने भी स्वीकार किया है और हर तरफ प्रशंसा हो रही हैI
एक तरफ जहाँ पूरा विश्व, विशेष रूप से यूरोप और अमेरिका, जिस तरह से इस महामारी के समक्ष लाचार खड़ा है, वहीं दूसरी तरह भारत तमाम संसाधानों की कमी और चुनौतियों के बावजूद अब तक इस लड़ाई को पूरी मजबूती के साथ लड़ रहा हैं। इसके नेतृत्व का पूरा श्रेय हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी को ही जाता है जिसके लिए उन्हें हृदय से आभार I
परन्तु अभी कई अनिश्चित प्रश्न देश के सामने खड़े हैं। मसलन कोरोना कब तक नियंत्रण में आएगा? देश में लॉकडाउन कब तक जारी रहेगा? क्या लॉक डाउन के हटने पर देश की दिनचर्या पूर्व की भांति सुचारू रूप ले पाएगी? इसका परिणाम विभिन्न रोजगारों पर कितना होगा? महामारी के हालात से निपटने में हमें कितना वक्त लगेगा?
इन प्रश्नों के उत्तर तो अभी स्पष्ट नहीं हैं, परन्तु यह एक धारणा बन रही है कि यह लड़ाई अभी लंबी चलेगी इसमें कोई संदेह भी नहीं है। परंतु चिंता का विषय यह है कि महामारी से जारी इस जंग का परिणाम या दुष्परिणाम हमारे गावों पर किस प्रकार से पड़ने वाला है।
भारत गांवों का देश है। यहां की बड़ी आबादी कृषि और मजदूरी पर निर्भर है। मौजूदा दौर में इनके हालात सबसे ज्यादा खराब दिख रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जो पूर्व से ही पलायन के शिकार रहे हैं उसकी गरीब जनता के लिए तो हालात थोड़े ज्यादा ही नाजुक हैंI हालांकि संकट को देखते हुए तत्काल भारत सरकार की तरफ से देश की 80 करोड की आबादी के लिए 5 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिमाह का मुफ्त अनाज देने की शुरुआत की जा चुकी है, लेकिन यह सहायता अल्पकालीन है इस बात को ध्यान में रखकर आगे के लिए ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है ताकि रोजाना कमाने-खाने वाली गरीब जनता इस संकट से उबर सके।
यह कटु सत्य है कि कृषि प्रधान देश होने के बावजूद हमारे किसानों के लिए खेती अब तक बहुत लाभप्रद नहीं रहा है। खेती को लाभदायक बनाने के लिए समय समय पर प्रयास और मंथन होते रहे हैंI मौजूदा हालात में देश की समस्या और किसानों के हालात को देखकर मुझे लगता है कि कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के जीवन स्तर में सुधार और संकट से उबारने के लिए मनरेगा जैसी योजनाएं बेहद ही कारगर साबित हो सकती है। मनरेगा के तहत ज्यादा से ज्यादा रोजगार दिवस मुहैया कराकर हम न सिर्फ किसानों के हालात में सुधार ला सकते हैं, बल्कि काफी हद तक पलायन से भी उन्हें रोका जा सकता है। जरुरत ठोस नीति बनाने की है जिसके तहत किसानों और मजदूरों को उन्हीं के ग्राम में ज्यादा से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराया जा सके।

मौजूदा दौर में हमारे दिहाड़ी मजदूर काम न होने के कारण भुखमरी के शिकार हैंI वहीँ दूसरी तरफ हमारे किसानों को मजदूर न मिलने की वजह से फसल की कटाई में समस्या आ रही है, जो आने वाले वक्त में फसलों की बुवाई को भी प्रभावित कर सकती है। देश जिस मौजूदा संकट से गुजर रहा है ऐसे में देश को भारी मात्रा में अनाज की जरुरत पड़ने वाली है। देश की इसी जरुरत और किसानों की समस्याओं को देखते हुए मेरा यह सुझाव है कि केंद्र की सरकार मनरेगा कानून में संशोधन कर अध्यादेश लाकर यह सुनिश्चित करे कि किसानों के खेतों में कटनी, इसके बाद दवनी और फिर बुवाई के कार्य को मनरेगा के कार्यों की सूची में शामिल किया जाए।
अगर केंद्र की सरकार इस दिशा में फैसला लेती है तो फिर इसके दो फायदे होंगे। एक तो हमारे जरूरतमंद मजदूर जो इस वक्त कोरोना संकट की वजह से दूसरे राज्यों से लौटकर अपने राज्य में आए हुए हैं और अपने अपने घरों में खाली बैठे हैं उन्हें काम मिलेगा और उनका परिवार ‘डिग्निटी ऑफ लेबर’ के साथ भूखमरी और गुरबत से निजात पाने में काफी हद तक सफल रहेगा। वहीं दूसरी तरफ किसानों की लागत में भी कमी आएगी क्योंकि मनरेगा से जो श्रमदान मिलेगा वह सीधा उनके लिए अतिरिक्त बचत होगाI
जब इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों की साथ ही उपलब्धता बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य में होती है तब जिन खेतों में पहले अधिक लागत के कारण या मजदूरों के अभाव के कारण किसान खेती करने से भाग रहे थे, उनमें भी वे सभी पुन: खेती की तरफ अग्रसर होंगे। इस तरह न सिर्फ किसान एवं मजदूर वर्ग आर्थिक रुप से सशक्त होगा बल्कि अनाज की उपज और उपलब्धता भी देश में बढ़ेगी। मेरा मानना है कि इस प्रयास के माध्यम से हम न सिर्फ मौजूदा आर्थिक संकट से उबर सकेंगे बल्कि भविष्य के लिए कृषि को उन्नत बनाने में भी हमें एक ऐतिहासिक कामयाबी हासिल होगी।
केंद्र की सरकार से मेरी विनम्र निवेदन है कि मेरे इस सुझाव पर गंभीरता से विचार कर यथोचित कार्रवाई को समायानुसार सुनिश्चित करे।