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चौसा के चंद्रजीत प्रकाश के बारे में जानें रोचक बातें

Bj Bikash
Last updated: 6th February 2021 6:59 pm
By Bj Bikash
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9 Min Read
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मधेपुरा : क्या ख़ूब पंक्ति है! जहां एक तरफ लोग अपने छोटे-मोटे मुश्किलों से परेशान हो जाते हैं, वहीं ऊपर की महज़ चार पंक्ति, अगर कहें कि चलना या फिर जीवन में आगे बढ़ना सीखा रही है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. जी हां, आज़ ‘कोसी की आस’ टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 36वीं कड़ी में एक ऐसे ही प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की कहानी प्रस्तुत करने जा रही है, जिनका न सिर्फ प्रारंभिक जीवन बल्कि यूं कहें तो अब तक का सफर ही काफी मुश्किल और उतार-चढ़ाव से लबालब रहा है. इन्होंने अब तक जो सफलता पाया है वह ‘रिस्क (जोख़िम) के लिए कॅरियर’ और ‘कॅरियर के लिए रिस्क (जोख़िम)’ का एक बेहतरीन उदाहरण है. तो आइये मिलते हैं चौसा, मधेपुरा के जयप्रकाश मेहता और मीना देवी के होनहार सुपुत्र चंद्रजीत प्रकाश से और जानते हैं, उनके अब तक के सफर के बारे में जो उन्होंने ‘कोसी की आस’ टीम के सदस्य के साथ बातचीत में बताया.

बचपन से ही मेधावी रहे चंद्रजीत की आर्थिक कारणों से प्रारंभिक शिक्षा, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा गांव (चौसा) के ही विद्यालय से हुई, स्नातक की पढ़ाई के लिए उन्होंने तिलका मांझी यूनिवर्सिटी भागलपुर में दाखिला लिया और 2006 में उन्होंने प्रथम श्रेणी से इसे पूर्ण किया. चंद्रजीत बताते हैं कि स्नातक होने के बाद मैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गया, लेकिन उसी दौरान भारत सरकार के महत्वाकांक्षी योजना NREGA अब MNREGA के क्रियान्वयन के लिए बिहार सरकार ने वर्ष 2007 में 11 महीने के अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) के आधार पर रिक्तियाँ निकाली थी, मैंने भी आवेदन कर दिया. मेरा चयन पंचायत रोजगार सेवक के पद पर अपने ब्लॉक के ही एक पंचायत के लिए ही हुआ, जिसका मासिक अनुबंध महज़ 2000 रुपए प्रति माह था.

बिहार में सरकारी नौकरी, यहां तक कि सरकारी अनुबंध का भी अपना अलग सामाजिक महत्व है, लिहाजा परिवार से भी दबाब था कि हम जॉइन (योगदान) कर लें. मैंने जॉइन कर लिया और वर्ष 2007 से 2012 तक मैं इस पद पर कार्य किया. इन पाँच वर्ष में मैंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी थी लेकिन मेरी पढ़ाई सुनियोजित तरीके से नहीं हो पा रही थी और मेरे मन में कहीं-न-कहीं एक कशक थी, कि मुझे बेहतर नौकरी के लिए प्रयास करना चाहिए और मैंने 2012 में पंचायत रोजगार सेवक, के अनुबंध वाले नौकरी को छोड़ UPSC की तैयारी के लिए दिल्ली के मुखर्जी नगर स्थित छात्रों के गढ़ में चला गया.

बच्चों को पढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा आदि से रुचि रखने वाले श्री चंद्रजीत बताते हैं कि सच पूछिए तो 2012 में UPSC की तैयारी के लिए दिल्ली जाने के बाद मेरी जीवन या फिर कॅरियर की असल परीक्षा शुरू हुई. उन्होंने आगे बताया कि मेरी शिक्षा हिन्दी माध्यम से हुई थी, मैं ये नहीं कहता कि हिन्दी माध्यम से UPSC में चयन नहीं होता, लेकिन यदि आप बीते वर्षों के सफल छात्रों के इतिहास को देखें तो हिन्दी माध्यम से सफल छात्रों की संख्या बेहद कम मिलेगी, लिहाजा मुझे भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था.

लेकिन कुछ वाक्य जिसने मुझे हर मुश्किल वक़्त में हिम्मत प्रदान किया, उसे मैं आपके माध्यम से सभी पाठकों से साझा करना चाहता हूं, 11/09/1938 पुणे में अस्पृश्य विद्यार्थियों के 11वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए सविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि ‘कोई व्यक्ति जन्मजात हीरो नहीं होता. जब इंग्लैंड में मैं छात्र था, तो मैंने सफलतापूर्वक अपना पाठ्यक्रम 2 साल 3 महीने की निर्धारित अवधि में कर लिया, जबकि सामान्य रूप से इसे पूरा करने में 8 साल लग जाते हैं. इसके लिए मैं दिन में 21 घंटे पढ़ता था. आज मेरी उम्र 40 के पार हो गई है. लेकिन अब भी मैं लगातार 18 घंटे कार्य कर सकता हूं. किंतु आज के युवा यदि आधे घंटे भी काम कर लेते हैं, तो उन्हें विश्राम की आवश्यकता पड़ती है. वे सिगरेट पीएंगे या लेट जाएंगे और ध्यान इधर-उधर कर लेंगे. आज इस उम्र में भी मुझे मन बहलाने के लिए ऐसी कोई ऐसी चीजों की जरूरत नहीं है. आपका स्वाध्याय व समर्पण ऐसा होना चाहिए.

बाबा साहब की उपर्युक्त पंक्ति मुझे हमेशा प्रभावित करती थी. मैं भी 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई कर रहा था, साथ ही पढ़ाई पर ही ध्यान रहे, इस वजह से घर से उस दौरान दूरी बनाकर रखा, लेकिन कभी भी मुझे अपनी सफलता को समाज एवं परिवार से जोड़ने में फ़क्र महसूस होता है. मैं दिल्ली UPSC के परीक्षा की तैयारी के उदेश्य से गया था लेकिन मैंने वहाँ स्थितियों को करीब से समझा और समय रहते राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षा को भी ध्यान में रखकर पढ़ाई करने लगा. BPSC की परीक्षा जब मैंने पहली बार दिया तो पहले प्रयास में ही मुख्य परीक्षा में मात्र 14 नंबर से छूट गया (726/712), मैंने एक बार फिर से उत्साह के साथ परीक्षा दिया और दूसरे प्रयास में एक बार फिर से मुख्य परीक्षा में मात्र 3 नंबर से छूट गया (480/477), बेबाकी से अपनी राय रखने वाले चंद्रजीत बताते हैं कि हिन्दी माध्यम के वजह से UPSC आसान नहीं था और महिलाओं के लिए 35 फीसदी का आरक्षण BPSC में लागू होने से कई गंभीर प्रतिभागी के लिए BPSC में सफल होना भी आसान नहीं रहा.

बेहतर प्रशासक बनने का सपना रखने और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का विचार रखने वाले चंद्रजीत बताते हैं कि तैयारी के दौरान एक बार फिर मेरा चयन सहायक शिक्षक के पद पर 2017 में जनता उच्च विद्यालय चौसा में हुआ, जहां से मैंने 10वीं पास किया था. माता-पिता और अपने स्कूल के बच्चे को सफलता का श्रेय देने वाले श्री चंद्रजीत बताते हैं कि लगातार दो बार बेहद कम अंकों से सफलता से चूक जाने के बाद जहां एक तरफ हिम्मत टूट रहा था, वहीं वैकल्पिक कॅरियर के रूप में मेरा शिक्षक होना, ने मुझे काफी बल दिया और एक बार फिर से मैंने पूरी मेहनत से परीक्षा देने का निर्णय किया और मेरे तीसरे प्रयास के परिणाम आपके सामने है, मेरा 63वीं BPSC में 149वें रैंक के साथ अंतिम रूप से राजस्व अधिकारी का पद के लिए चयन हुआ.

वर्तमान में प्रयासरत छात्रों को क्या कहना चाहेंगे के सवाल पर उन्होंने जो बताया उन्हीं के शब्दों में परोसना चाहूँगा- किसी भी परिस्थिति में अपना कार्य ईमानदारी से करें और कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है. कठिनाई बेशक बहुत होंगी या आएगी चाहे वो आर्थिक रूप में, स्वास्थ्य संबंधी हों या फिर पारिवारिक समस्या लेकिन दृढ़ निश्चय और संयम से सभी का समाधान हो जाता है. इसलिए कठिनाइयों से हतोत्साहित होकर अपने प्रयास को न छोड़ते हुये बल्कि उसे जारी रखें.

कोसी की आस परिवार, चंद्रजीत प्रकाश के इस शानदार सफलता के लिए समूचे परिवार की ओर से बधाई और शुभकामनायें देती है और उनके उज्ज्वल भविष्य की कमाना के साथ आशा करती है कि अब वो अपने कार्यों से समाज जो प्रतिष्ठा दिलाएँगे. साथ ही कोसी की आस परिवार अपने सभी पाठकों से कहना चाहती है कि साधन की कमी, आर्थिक, पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का रोना-रोने के बजाय आपके द्वारा सही समय पर सही निर्णय आपको सफलता की दहलीज़ पार करा सकती है.

TAGGED: #Bihar, #Chandrajeet Prakash, #Chausa, #Learn Interesting, #Madhepura
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