पटना ब्यूरो
नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने कोरोना प्रभावित राज्यों की मदद और जल्द से जल्द स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सात दिन का वक्त तय किया है। इस दौरान हर राज्य के सभी जिला प्रशासनिक अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बैठक होगी। इसमें अस्पतालों, जांच, निगरानी और राशन आदि पर जानकारी मांगी जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने सोमवार को इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश से की। महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के साथ ही मध्य प्रदेश में भी सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले मिल रहे हैं। मध्य प्रदेश के सभी जिला अधिकारियों के अलावा शीर्ष चिकित्सीय संस्थानों के निदेशक से भी दिक्कतों पर जानकारी मांगी गई। एक दिन पहले ही मंत्रालय ने 10 राज्यों की मदद के लिए 20 विशेष टीमें गठित की थी। इसमें मध्य प्रदेश के भोपाल एम्स और एनसीडीसी के विशेषज्ञ शामिल हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बताया गया कि मध्य प्रदेश में टीमें इंदौर और भोपाल में कार्य शुरू कर चुकी हैं। सबसे पहले इन्होंने सर्विलांस पर फोकस किया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस हफ्ते हर दिन स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, विशेष सचिव, संयुक्त सचिव इत्यादि के साथ राज्यों के एक-एक जिले पर फोकस किया जाएगा। इसके चलते मंत्रालय ने अपने बाकी विभागों की गैर जरूरी बैठकों को अगले सप्ताह तक टाल दिया है। उन्होंने बताया कि आगामी 17 मई का लक्ष्य ध्यान में रखते हुए यह हफ्ता सभी राज्यों के लिए बेहद जरूरी है। इस सप्ताह में किए गए प्रयास अगले एक हफ्ते बाद दिखाई देंगे। पश्चिम बंगाल में कोरोना के हालातों का जायजा लेकर लौटी केंद्रीय टीम ने दावा किया है कि राज्य में कोरोना मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा 12.8 फीसदी है। राज्य के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मेडिकल बुलेटिन में दिखाए संक्रमण के आंकड़ों और केंद्र सरकार को दी जानकारी में काफी अंतर है। पत्र में ममता सरकार पर टीम को असहयोग करने की बात भी दोहराई गई है। कोलकाता पहुंची केंद्रीय टीम के प्रमुख अपूर्व चंद्रा ने राज्य के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को सोमवार को भेजे पत्र में कहा है, ‘देश में कोविड-19 मृत्यु दर पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 12.8 प्रतिशत है। यानी यहां हर 100 संक्रमितों में से करीब 13 ने जान गंवाई है। यह उच्च मृत्यु दर दर्शाती है कि राज्य में टेस्ट कम हुए और संक्रमितों की निगरानी में लापरवाही बरती गई है।