रांची : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस समय यूनियन बजट 2021-22 पेश की. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्नवक्ता आलोक कुमार दूबे, डॉ. राजेश गुप्ता छोटू, आर्थिक मामलों के जानकार सूर्य कांत शुक्ला, निरंजन पासवान और प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक अध्यक्ष शकील अख्तर अंसारी ने कहा है कि आज का बजट घोर निराशाजनक है. कंजपश्न खर्च को कोई प्रोत्साहन नहीं दी गई है. उपभोक्ता को कोई राहत नहीं मिला है और ना ही आयकर में कोई प्रोत्साहन दिया गया. जिससे आयकरदाता को खर्च योग्य अतिरिक्त आय देने का कोई प्रावधान भी बजट में नहीं है और देश को भारी निराशा हाथ लगी है.
आयकर दाताओं एवं उपभोक्ताओं को भारी निराशा हाथ लगी है जिससे बाजार में मांग को लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिख रही है. इस बजट में आम आदमी के लिए कुछ नहीं है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट एक तरह से बाबाजी का ठुल्लू साबित हुआ है. कोई वित्तीय हस्तांतरण नहीं किया गया ना ही किसी प्रकार के इनकम टैक्स में कोई रिलीफ दी गई है.
कांग्रेस भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता आलोक दूबे ने कहा कि बैंकों को पुनरपूंजीकरण की जरूरत थी ताकि वह लोन देने लायक बने रहें. क्योंकि बैंकों का एनपीए आरबीआई रिपोर्ट के अनुसार 12 से 13 फीसदी तक बढ़ने वाला है. इसके लिए कम से कम दो लाख करोड रुपए का पूंजी कवर चाहिए था. ताकि बैंक लोन दे पाए क्योंकि ग्रोथ विकास के लिए क्रेडिट को बढ़नी चाहिए थे. यह अभी मात्र छह फीसदी ही है.
वहीं एमएसएमई पहले से दबाव में है. गारंटी क्रेडिट स्क्रील के तहत ऋण का उपयोग नहीं किया गया क्योंकि वे ऋण लेना नहीं चाहते भारी दबाव के वजह से, उन्हें शेयर के रूप में सरकार का सहयोग मिलता तो ज्यादा अच्छा होता क्योंकि इसमें एमएसएमई को लोन पर ब्याज नहीं देना होता.जब कंपनी फायदा करती तब निवेशक को भी फायदा मिलता.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता डॉ. राजेश गुप्ता ने कहा कि कोरोना महामारी जैसी तबाही वाली आपदा जिसमें जीवन जीविका, रोजी रोजगार, बिजनेस, व्यापार, मजदूरी दिहाड़ी और देश के गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य नुकसान के साथ आए. नुकसान झेलने के बाद इस बजट से यह उम्मीद बंधी थी कि जो मुश्किलें आपदा में खड़ी हो गई है. उनका निवारण केंद्रीय वित्त मंत्री का यह बजट करेगा. परंतु बजट से देशवासियों को गहरा धक्का लगा है. देश की विकास दर पहले से ही गिरावट के रास्ते पर हैं, कोरोना जनित लाकडाउन के कारण यह खाई में गिर गई है. अर्थव्यवस्था में पहले इतना बड़ा संकुचन कभी नहीं देखा गया. नेगेटिव ग्रोथ-23 फीसदी को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की जीडीपी के नाम दर्ज हुई थी. इतनी बड़ी गिरावट से अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए जो साहस, जो वित्तीय बुद्धिमता जो बढ़ा हुआ पूंजीगत खर्च चाहिए था बजट में वह कहीं नहीं दिखा.
सूर्य कान्त शुक्ला ने कहा कि आज के प्रस्तुत बजट में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और देश की इकोनॉमी को लगातार पिछले तीन सालों से गिरावट की ओर ले जा रही है. जिससे राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर में गिरावट जारी है. इस पर मोदी सरकार और उनकी टीम को मंथन करना चाहिए था. यह सच्चाई है जो सरकार के डाटा में उपलब्ध है स्टेटमेंट नहीं फैक्ट है. आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने तंग वित्तीय नीति के लिए सरकार की आलोचना करते हुए उधार लें और खर्च करें का मंत्र दिया था. परंतु इसका कोई खास असर केंद्र के बजट में नहीं दिखलाई पड़ा. ऑक्सफेस की रिपोर्ट बताती है कि देश के 50 कारपोरेट की संपत्ति में तीन लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है. सूचीबद्ध कारपोरेट के तिमाही मुनाफे में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है जो अपने आप में घोर आश्चर्यजनक है. जबकि पूरे देश की अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही थी. यह असमानता को बढ़ावा दे रही है. गरीबी रेखा में जीने के लिए एक बड़ी आबादी को गरीबी रेखा के नीचे धकेल रही है.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के पहले अग्रिम अनुमान में उपभोक्ता खपत में 9.5 फीसदी की गिरावट की बात कही गई है. देश की अर्थव्यवस्था में खपत का 60 फीसदी का योगदान है. आर्थिक सर्वे रिपोर्ट भी खपत को बढ़ावा देने का सुझाव देता है. परंतु बजट में आम आदमी को जो उपभोक्ता हैं. कोई वित्तीय राहत नहीं दी गई है कि वह खपत खर्च बढ़ा पाए. आरबीआई ने भी दिसंबर में पोलिसी स्टेटमेंट में मांग को कमजोर बताया. इसके लिए गरीब आदमी को वित्तीय सहयोग के सहारे आयकरदाता को टैक्स स्लैब छूट की सीमा बढ़ाकर अतिरिक्त पैसे दे सकते थे. जिसका साहस सरकार नहीं जुटा पाती और ग्रोथ को समर्थन देने से चूक गई.
कैपिटल एक्सपेंडिचर में जो आबंटन बढ़ाया है वह बहुत कम है. पहले 4.48 लाख करोड़ था जिसे 5.54 लाख करोड़ किया गया. जबकि उम्मीद और जरुरत यह थी कि इस मद में कम से कम सात लाख करोड़ का आवंटन किया जाना चाहिए था. जिससे ग्रोथ को मदद मिलती. जब फंडिंग की व्यवस्था विनिवेश से होती है तो विनिवेश का लक्ष्य पहले 2.10 लाख से घटाकर 1.75 लाख करोड़ क्यों किया गया. बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आवंटन बढ़ाया गया है जिसकी उम्मीद थी. देश ने कोरोना संकट काल में स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी कमी का एहसास किया था. सरकार का यह बजट घाटा चालू वित्त वर्ष के लिए 9.5 फीसदी और वित्त वर्ष के लिए 6.8 फीसदी सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन को उजागर करता है.
रियल स्टेट को भी इस बजट से निराशा हुई है. घर खरीदने को इच्छुक लोगों को प्रोत्साहन नहीं दिया गया सिर्फ एक साल की अवधि पहले से घोषित छूट के लिए ही बढ़ाई गई है और कोई छूट नहीं दी गई. जबकि 2022 तक सबको आवास का सरकार का लक्ष्य भी नजदीक है. होमवायर्स को प्रोत्साहन से रियेल स्टेट को बल मिलता. प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कहा कि रोजगार सृजन की दिशा में पूरी तरह से सरकार विफल साबित हुई है. इस बजट में जहां देश यह अपेक्षाएं कर रहा था कि प्रतिदिन कमाने वाले, फुटपाथ दुकानदार और बेरोजगार जिनकी कोई संगठित आय नहीं है उन्हें कैश ट्रांसफर किया जाएगा, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ.
गौरी रानी की रिपोर्ट