रांची : झारखंड में कुपोषण से निपटने के लिए केंद्र प्रायोजित समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) के तहत बहाल की गईं 10,388 पोषण सखियों की सेवा समाप्त कर दी गई है. हेमंत सोरेन सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक अप्रैल 2022 की तिथि से इनकी सेवा समाप्त किए जाने के संबंध में आदेश जारी कर दिया है. थोड़ी राहत की बात यह है कि इन्हें 31 मार्च 2022 तक के लिए बकाया मानदेय का भुगतान किया जाएगा. इनकी स्थाई नौकरी नहीं थी. मानदेय पर बहाल की गई थीं.
झारखंड के छह जिलों में सेवा दे रही थीं यह महिलाएं
केंद्र सरकार के निर्देश पर वर्ष 2015 में झारखंड के छह जिले धनबाद, गिरिडीह, दुमका, गोड्डा, कोडरमा और चतरा में अतिरिक्त आंगनबाड़ी सेविका सह पोषण परामर्शी के रूप में इन पोषण सखियों की नियुक्ति हुई थी. इन्हें प्रतिमाह तीन हजार रुपये मानदेय दिए जा रहे थे, लेकिन केंद्र ने वर्ष 2017 से इस मद में मानदेय की राशि देनी बंद कर दी है. राज्य सरकार ने इसकी समीक्षा के बाद इन पोषण सखियों की सेवा समाप्त करने तथा बकाया मानदेय का भुगतान आइसीडीएस के दूसरे मदों के राज्यांश से करने का निर्णय लिया है.
मंत्री जोबा मांझी ने बकाया भुगतान का किया था वादा
बता दें कि पोषण सखियां बकाया मानदेय भुगतान, मानदेय की राशि बढ़ाने तथा स्थायीकरण की मांग को लेकर विधानसभा के पूरे बजट सत्र के दौरान आंदोलनरत रही हैं. पोषण सखियों के बकाया मानदेय का मामला विधानसभा में भी उठा था, जिसमें विभागीय मंत्री जोबा मांझी ने इनके बकाया भुगतान का आश्वासन देते हुए यह भी स्वीकार किया था कि पोषण सखियों की आवश्यकता न केवल इन छह जिलों, बल्कि अन्य सभी जिलों में भी है.
झारखंड में कुपोषण की स्थिति बेहद चिंताजनक
मालूम हो कि झारखंड कुपोषण और एनीमिया की समस्या से जूझ रहा है. यहां पोषण संबंधित आंकड़े चिंताजनक हैं. 15वें वित्त आयोग द्वारा कुपोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए 2020-21 में झारखंड के लिए 312 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे. झारखंड में लगभग 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. झारखंड में 0 से छह वर्ष के बच्चों में प्रत्येक दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है. यह जानकारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट में दी गई है. वहीं, राज्य में 45 प्रतिशत बच्चे मानक से कम वजन के हैं. 23 प्रतिशत बच्चे दुबले-पतले हैं. 11.3 प्रतिशत बच्चे अत्यंत कुपोषित हैं. 40.3 प्रतिशत बच्चे अल्प विकसित हैं.