PATNA: खबर दानापुर के फुलवारीशरीफ से है जहाँ जल – जीवन- हरियाली को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अभियान तकनीकों का पदाधिकारी एवं किसानगण भी कास्ट के माध्यम से जुड़े थे। उद्घाटन जैविक खेती एवं कृषि पर्यावरण के संकट को राज्य सरकार ने समय से पहचाना है और इसके लिए कारगर कदम उठाये जा रहे है। मुख्यमंत्री की पहल पर 13 जुलाई 2019 को बिहार विधान सभा के हिन्द्रीय कक्ष में विधानमंडल सदस्यों की संयुक्त बैठक बुलाई गयी ।
सदस्यों के सुझाव एवं सर्वदलीय सहमति के बाद जल जीवन- हरियाली अभियान की शुरुआत 09 अगस्त , 2019 को की गयी । इस प्रकार , राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस प्रयास शुरू किया गया । जल – जीवन- हरियाली अभियान में कृषि विभाग के साथ ग्रामीण विकास विभाग , शिक्षा विभाग , नगर विकास ” एवं आवास विभाग लघु जल संसाधन विभाग , लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग , जल संसाधन विभाग पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग , पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग , ऊर्जा विभाग , राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग पंचायती राज विभाग , भवन निर्माण विभाग , स्वास्थ्य विभाग सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग प्रत्यक्ष रूप से और राज्य सरकार के सभी विभाग अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं ।
जल – जीवन- हरियाली अभियान के तहत सार्वजनिक जल संरचनाओं तालाब , पोखर , कुंआ , नदी , नाला आहर , पाइन के जीर्णोद्वार के साथ – साथ नये जल स्रोतों का सृजन किया जा रहा है । सरकारी भवनों की छत पर वर्षा जल के संचयन तथा सौर ऊर्जा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है । आवश्यकता के मद्देनजर वैकल्पिक फसलो . टपकन सिचाई , के जल – जीवन – हरियाली दिवस ” कार्यक्रम उपयोग विषय पर परिचय की गई । इसमें बिहार के सभी 38 जिलों से कृषि विभाग को भी इस अभियान के तहत स्पष्ट दायित्व दिया गया है ।
जल – जीवन- हरियाली अभियान के तहत कृषि विभाग के द्वारा जैविक खेती , जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम , फसल अवशेष प्रबंधन , सूक्ष्म सिंचाई खेत में जल संचयन , जलछाजन के विकास के लिए नये जल – खोलो के सृजन के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है । जलवायु अनुकूल खेती के लिए सभी जिलों में कार्यक्रम चलाये जा रहे है । इस योजना के अंतर्गत 190 गाँवों को जलवायु के अनुकूल मॉडल कृषि गाँवों के रूप में विकसित किया गया है ।
जलवायु के उपयुक्त फसल के चुनाव तथा फसल प्रभेद का चुनाव बहुत आवश्यक है । यह बात वैज्ञानिक किसानों को समझा रहे हैं । बाजरा , महुआ , बीना , कोनी जैसे फसलों की खेती किसान छोड़ चुके हैं । बदलते मौसम में ये फसल महत्वपूर्ण विकल्प बन रहा है । पारंपरिक रूप से किसान धान की रोपनी करते रहे हैं । इससे मिट्टी की संरचना बिगड़ जाती है । कृषि वैज्ञानिक इसके बदले धान की सीधी बुआई की बात किसानों तक पहुंचा रहे हैं . यह संभव है ।
गेहूँ के पकने के समय तापमान के बढ़ने के कारण गेहूं के दाने में पूरी तरीके से दूध नहीं भर पाता है तथा यह मैच्युरिटी से पहले सूख जाता है । इससे गेहूँ की उपज कम हो जाती है । टर्मिनल हीट की इस समस्या से वैज्ञानिक किसानों को अवगत करा रहे है तथा इससे निपटने की तकनीक बता रहे हैं । बदलते मौसम के परिप्रेक्ष्य में खेती को नये तरीके से देखने की जरूरत है तथा नई फसल पद्धति को विकसित करना आवश्यक है । खेत को देखने से लगता नहीं है कि यह उबर – खाबर है , लेकिन जब लेजर मशीन चलता है तो साफ दिखता है कि खेत समतल नहीं है ।
सभी जिलों में वैज्ञानिकों की देख – रेख में खेत को समतल बनाने का कार्य किया जा रहा है । जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य के 13 जिलों पटना , बक्सर , भोजपुर , सारण , वैशाली , समस्तीपुर , खगड़िया , बेगूसराय लखीसराय भागलपुर , मुंगेर कटिहार एवं नालदा में जैविक कॉरिडोर योजना कार्यान्वित किया जा रहा है । राज्य सरकार ड्रीप तथा स्प्रिंकलर सिंचाई को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान दे रही है । जलछाजन क्षेत्रों में नये जल स्रोतों के सृजन के लिए 90 प्रतिशत तक अनुदान का प्रावधान है । जल होगा तो हरियाली होगी और हरियाली होगी तो जीवन होगा । इसलिए जल – जीवन- हरियाली अभियान प्रदेश ही नहीं विश्व के प्रत्येक मानव का अभियान बनाना चाहिए।
दानापुर से रजत राज की रिपोर्ट