वर्षों इंतजार और सिद्धिविनायक मंदिर में मन्नत के बाद काेराेना महामारी के बीच श्रमिक दंपती राजू कुमार और उनकी पत्नी रिंकू देवी की गाेद में नन्ही परी आई, लेकिन चलती स्पेशल ट्रेन में। उसकी मुस्कुराहट के लिए तरस रहे मां-बाप की गाेद में ही उस परी ने चंद घंटों में बिना इलाज दम ताेड़ दिया। 1600 किमी आइसबाॅक्स में बच्ची का शव लेकर आई मां को बिलखते देख जब पूछा-क्या हुआ? जवाब मिला- इस आइसबाॅक्स में मेरी बच्ची है।…और फफक पड़ी।
लाकडाउन के बाद बेराेजगारी की बेबसी में स्पेशल ट्रेन से गर्भवती पत्नी के साथ राजू घर लाैट रहे थे। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर के पास रिंकू देवी ने बच्ची को जन्मा। जबलपुर में महिला चिकित्सक ने कहा- बच्ची ठीक है। 3 गाेलियां दीं, जांच नहीं की। ट्रेन चलते ही बच्ची की तबीयत बिगड़ी। सतना पर उसने गार्ड से इलाज की गुहार लगाई।
राजू को सतना में बताया कि छेवकी स्टेशन पर इलाज हाे सकेगा। छेवकी तक 12 घंटे लगे। इस 200 किमी में बच्ची दम तोड़ चुकी थी। मिर्जापुर तक मां-पिता आंसू बहाते रहे। बाकी यात्रियों ने शिकायत की। फिर आरपीएफ ने मदद करके आइसबाॅक्स-बर्फ उपलब्ध कराया। फिर पिता ने ही खुद अपने कलेजे के टुकड़े को उसमें पैक किया।
राजू ने कहा यदि सतना में सही से इलाज हाेता, ताे मेरी बच्ची बच सकती थी। हमने बेटी के शव की वजह से बरूराज के पास स्थित मेहसी स्टेशन पर ट्रेन रुकवाने का अनुरोध किया। रेलवे के एरिया अफसर ने इसे नहीं माना। ट्रेन अपनी मंजिल मुजफ्फरपुर जंक्शन पर आकर रुकी।…पर हमारी मंजिल हमेशा के लिए अधूरी रह गई।
