रखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कैबिनेट में मंत्री रहे सरयू राय एक बार फिर से आमने सामने हैं। सोमवार को पूर्व मंत्री सरयू राय की किताब ‘लम्हों की खता’ का लोकार्पण हुआ। यह किताब मैनहर्ट घोटाले पर लिखी गई है, जिसमें पूर्व सीएम रघुवर दास पर सवाल उठाए गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसका करारा जवाब दिया है। रघुवर ने कहा कि सरयू राय जी की किताब मैनहर्ट पर आई है, जिसमें मेरे नाम का उल्लेख है। ऐसी स्थिति में झारखंड की जनता को सच जानने का अधिकार है। यह एक ऐसा मामला है, जिसे विधायक सरयू राय समय-समय पर उठाकर चर्चा में बने रहना चाहते हैं। उन्होंने पहले भी कई बार इस मुद्दे को उठाया है। जनता यह जानना चाहेगी कि आखिर बार-बार मैनहर्ट का मुद्दा उठाकर राय जी क्या बताना चाहते हैं? किस बात को लेकर उन्हें नाराजगी है? कहीं ओ.आर.जी. को दिया गया ठेका रद्द करने से तो वे नाराज नहीं है?
जिस मैनहर्ट पर यह किताब है, वह मामला बहुत पुराना है। इसकी जांच भी हो चुकी है। सचिव ने जांच की, मुख्य सचिव ने जांच की, कैबिनेट में यह मामला गया। भारत सरकार के पास मामला गया। वहां से स्वीकृति मिली। कोर्ट के आदेश के बाद भुगतान किया गया। तो क्या कोर्ट के आदेश को भी नहीं मानते हैं राय जी। क्या यह माना जाए कि सरकार से लेकर न्यायालय के आदेश तक, जो भी निर्णय हुए वह सब गलत थे और सरयू राय जी ही सही हैं! यदि उन्हें लगा कि कोर्ट का आदेश सही नहीं था तो वे अपील में क्यों नहीं गये? कोर्ट नहीं जाकर अब किताब लिख रहे हैं!
यहां गौर करने की बात यह है कि जिस समय भारत सरकार ने इसे स्वीकृति दी, उस समय केंद्र में श्री मनमोहन सिंह की सरकार थी और झारखंड में श्री अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा-झामुमो गठबंधन की सरकार थी। जिस समय कोर्ट के आदेश पर भुगतान हुआ उस समय न तो मैं मुख्यमंत्री था और ना ही मंत्री। जब मैं नगर विकास मंत्री था, उस समय मैनहर्ट के मामले में मैंने कमेटी बनवाई थी। उसके बाद की सरकारों ने इस पर फैसला लिया, तो मैं इसमें कहां आता हूं? सच यह है कि राय जी मेरी छवि धूमिल करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। यह किताब भी मेरी छवि खराब करने की नीयत से लिखी गई है। इस पूरे मामले को विस्तार से ऐसे समझा जा सकता है।