बिहार में एक तरफ जहां चुनाव की तैयारियों जोरों पर चल रही है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा और जदयू वोटरों को लुभाने की कोशिशों में जुटी है। पार्टी के बड़े नेता लगातार वर्चुअल रैली कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी पिछले 15 साल में किए गए विकास की गाथा जनता को सुनाई जा रही है। बड़े बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक सोशल मीडिया में धुंआधार प्रचार कर बता रहे हैं कि बिहार में बहार है।
चुनाव से जुड़ी यह कवायद एकरतफा है। दरअसल बिहार में हालात इनदिनों बेहद खराब हैं। कोरोना से लेकर बाढ़ की त्रासदी ने लोगों की जिंदगी में परेशानियों को बढ़ा दिया है। बढ़ती बेरोजगारी अलग ही समस्या है। शिकायतें और मुसीबतें कई है। लेकिन उसपर ध्यान देने के बजाय सरकार बिहार की जनता को बहार का वर्चुअल अहसास कराने में लगी है।
बात अगर कोरोना की करें तो यहां महामारी का आंकड़ा 1 अगस्त को करीब 55 हजार के पार चला गया है। यह हालात तब है जब बिहार देश में सबसे कम जांच करने वाले राज्यों में शुमार है। बिहार में हर 10 लाख की आबादी पर महज 3 हजार लोगों की कोरोना जांच को रही है। बात अगर पड़ोसी राज्य की करें तो झारखंड में प्रति 10 लाख की आबादी पर करीब 7 हजार लोगों की जांच की जा रही है। इतना ही नहीं रिकवरी रेट में भी झारखंड के हालात बिहार से काफी बेहतर हैं। बिहार में फिलहाल कोरोना का रिकवरी रेट 64 फीसदी है तो वहीं झारखंड में यह 66 फीसदी है।
दोनों राज्यों की तुलना करें तो संक्रमण का प्रसार (पॉजिटिविटी) भी बिहार की तुलना में झारखंड में कम है। बिहार में जहां प्रति मिलियन 280 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो रही है, वहीं झारखंड में प्रति मिलियन महज 203 मरीज मिल रहे हैं।
यह आंकड़ा साबित कर रहा है कि बिहार में कोरोना रोकथाम का सरकारी अभियान झारखंड की तुलना में काफी खराब है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि बिहार में नीतीश कुमार पिछले 15 साल से सत्ता पर काबिज हैं जबकि झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार 7 महीने पहले ही आई है। बावजूद इसके कोरोना रोकथाम में नीतीश सरकार की नीति और नीयत दोनों की तुलना में हेमंत सरकार काफी आगे दिख रही हैं।
कहने को तो बिहार में डबल इंजन की सरकार है। लेकिन एक सच यह भी है कि बिहार सरकार ने कोरोना पर अपनी तरफ़ से खुल कर केन्द्र से ना कोई मदद माँगी, ना ही ख़तरे की घंटी का जिक्र ही किया. केंद्र ने भी अभी तक किसी तरह की खास मदद बिहार को नहीं पहुंचाई है। हांलाकि पिछले रविवार को दिल्ली से विशेषज्ञों की एक टीम को पटना भेजकर केंद्र ने अपनी जिम्मेवारी पूरी कर ली.
हालाँकि बिहार सरकार ने कोरोना की बिगड़ती हुई हालत से निपटने के एक बार फिर से लॉकडाउन लगाया है। उसका कितना फ़ायदा मिलेगा इसका पता कुछ समय बाद ही चलेगा।
पटना में केवल दो अस्पतालों को ही कोविड 19 अस्पताल बनाया गया है. इसके अलावा दो अस्पतालों को आइसोलेशन सेंटर बनाया गया है. नतीजा ये कि बाक़ी ज़िलों से ज़्यादातर मरीज़ों को पटना रेफ़र किया जा रहा है और प्राइवेट अस्पतालों ने इलाज के लिए हाथ खड़े कर दिए हैं, सरकार की सख्ती के बाद कुछ निजी अस्पतालों में ईलाज शुरू किया गया है.
बिहार में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं. अंदाज़ा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है. राज्य में पहला पॉजिटिव मामला 22 मार्च को आया था. तीन मई को 500 पॉजिटिव मामले हुए. 31 मई तक संख्या 3,807 थी और जून ख़त्म होते-होते 9744 पर पहुँच गया. लेकिन, इसके बाद जिस तेज़ी से यहाँ संक्रमण का प्रसार हुआ है, उससे बिहार देशभर की चिंता बन गया है. जुलाई के पहले 18 दिनों के अंदर सूबे में 15223 नए मामले मिले हैं. जुलाई के अंत में कोरोना मरीजों की संख्या 55 हजार हो गई है. जिस हिसाब से कोरोना पैर पसार रहा है उससे आशंका जतायी जा रही है कि बिहार में कोरोना अब कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की तरफ बढ़ चुका है.
बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ऐसा है कि हर दिन कोरोना संक्रमितों से जुड़े दर्दनाक वीडियो सोशल मीडिया में वारयल हो रहा है. व्यवस्था में सुधार नहीं होने पर पिछले 3 महीने में नीतीश कुमार ने दो स्वास्थ्य सचिवों को चलता कर दिया है. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद हालात हर गुजरते वक्त के साथ बेकाबू होते जा रहे हैं.
अब बात बिहार के बाढ़ की करते हैं
अब अगर बात बिहार के बाढ़ की करें तो 1 अगस्त तक बिहार के 15 जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं. राज्य की करीब 55 लाख की आबादी सीधे तौर पर बाढ़ का प्रकोप झेल रही है. करीब 4 लाख लोग खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. 15 जिलों में 11 सौ से अधिक पंचायत फिलहाल बाढ़ की चपेट में है. सूबे में 5 लाख हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हो चुकी है. हज़ारों लोगों के घर-मकान पानी में बह चुके हैं, लाखों लोग बेघर होकर अपने जान-माल के साथ ऊंचे स्थानों पर शरण लेने के लिए विवश हैं.
बिहार का आपदा प्रबंधन विभाग जो कुछ दिनों पहले तक लॉकडाउन के दौरान बाहर से आ रहे प्रवासियों के क्वारंटीन की व्यवस्था और रखने-खिलाने के इंतज़ाम में जुटा था, इन दिनों बाढ़ से बचाव और राहत कार्यों में लगा है. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की कुल 26 टुकड़ियां राहत और बचाव कार्यों में लगी हुई हैं. फिलहाल जितनी बड़ी आबादी बाढ़ से प्रभावित है उस हिसाब से सरकार के इंतज़ाम तो नाकाफ़ी लगते ही हैं, उसमें भी हैरान करने देने वाली बात ये है कि जैसे-जैसे बाढ़ का दायरा बढ़ता जा रहा है सरकारी इंतज़ामों में कमी भी होती दिख रही है.
वैसे तो बाढ़ का ख़तरा पूरे बिहार पर मंडरा रहा है क्योंकि अभी तक की बरसात में ही सूबे में सामान्य से 46 फ़ीसदी अधिक वर्षा हो चुकी है और मौसम विभाग ने इस साल और अधिक बारिश की संभावना जताई है. मगर इस वक़्त उत्तर बिहार का इलाका ख़ास तौर पर नेपाल से निकलने वाली नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में भारी बरसात होने के कारण लगभग सारी नदियां खतरे के निशान को पार कर गई हैं.
बिहार में कोविड 19 का संक्रमण जिस तेज़ गति से बढ़ रहा है उससे यह भी डर है कि संक्रमण की यह कड़ी बाढ़ पीड़ितों तक न पहुंच जाए.
बिहार सरकार ने बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए हर परिवार को छह-छह हज़ार रुपये नकदी देने की घोषणा की है. सरकार की तरफ से राहत कैंप और सामूदायिक रसोई की शुरुआत भी की गई है. राज्य में 19 राहत शिविर लगाए गए हैं जिनमें 25 हजार लोग रह रहे हैं. वही 1000 सामुदायिक किचेन के माध्यम से पांच लाख 80 हजार लोगों को प्रतिदिन भोजन कराया जा रहा है. लेकिन जितने बड़े पैमाने पर आबादी बाढ़ से प्रभावित है उसके सामने सरकार की व्यवस्था बौनी साबित हो रही है.
कुल मिलाकर कहें तो कोरोना और बाढ़ दोनों से निपटने में डबल इंजन की सरकार हर मोर्चे पर नाकाब ही साबित हो रही है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि जब सूबे की जनता इतनी मुसीबतों में घिरी है तो फिर चुनाव की तैयारियों के बीच वर्चुअल रैली के जरिए बिहार में बहार है की घोषणा कितनी राहत दे पाएगी. बेहतर यही होगा कि सरकार को चुनाव से ज्यादा बाढ़ आपदा और कोरोना महामारी से जनता को बचाने के लिए फिक्र करनी चाहिए, लेकिन अफसोस इसके आसार फिलहाल तो दिख नहीं रहे हैं.
संदीप सिंह की रिपोर्ट