द एचडी न्यूज डेस्क : संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवेलपमेंट (UNCTAD) ने ख़बर दी है कि कोरोना वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है. ये केवल व्यापार में आमदनी और नुकसान का मामला नहीं है. किसी भी बुरे प्रभाव की एक मानवीय क़ीमत भी होती है और हालात के हिसाब से व्यापारियों को ये चुकानी भी पड़ती है. लेकिन जरा सोचिए कि देश के मध्यम और छोटे वर्ग के व्यापारी किस हद तक कीमत चुका सकते हैं.
देश इस वक्त महामारी के संकट से जूझ रहा है. लॉकडाउन का एक महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है और सबकुछ ठप पड़ा है. हालात कब सामान्य होंगे अभी कहा नहीं जा सकता. फिलहाल जो सामने है वो है भविष्य का खतरा और मौजूदा वक्त का एक बड़ा नुकसान. कोरोना संकट की मार सबसे ज्यादा व्यापारियों पर पड़ी है. धंधा एक महीने से चौपट है. माल दुकान या गोदाम में खराब हो रहा है. महाजन अथवा कंपनी लॉकडाउन खत्म होते ही भुगतान का प्रेशन बनाने लगेगी. कुछ कंपनियां तो अभी से ही ऑनलाइन पैमेंट भुगतान का दबाव व्यापारियों पर बनाने लगी है. कर्मचारी फोन कर अभी से ही सैलरी की मांग करने लगे हैं. कर्मचारियों (स्टॉफ) की उम्मीदें जायज हैं क्योंकि मुसीबत की इस घड़ी में उनका साथ मालिक (व्यापारी) नहीं देंगे तो फिर कौन देगा.
अब जरा इसी हालात को दूसरे नजरिए से देखिए. लॉकडाउन की वजह से व्यापारियों को धंधा चौपट है. कर्मचारियों की सैलरी, दुकान का भाडा, माल का भुगतान, घर का खर्च, होम लोन, वाहन लोन और बैंक लोन इतना सबकुछ करना है. बेशक व्यापार रुक गया हो लेकिन न तो जिंदगी रुकी है और न ही खर्च. ऐसे में व्यापारी इस बोझ को अकेले उठाए भी तो कैसे. ऐसे हालात में व्यापारियों की उम्मीदें भी यहां सरकार पर जा टिकी है. ठीक उसी तरह जैसे मुसीबत में कर्मचारियों की उम्मीदें व्यापारियों पर टिकी है. संकट के इस दौर में व्यापारियों को आस है कि इस मुसीबत में सरकार ही है जो थोड़ी राहत दे सकती है.
धनबाद (झारखंड) जिले के व्यवसायी और झारखंड जीएसटी सलाहकार समिति के सदस्य सुरेंद्र अरोड़ा ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर समस्याओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है. व्यवसायी सुरेंद्र अरोड़ा ने वित्त मंत्री सीतारमण से आग्रह किया है कि जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से जिन व्यापारियों ने ईमानदारी से सरकार को जीएसटी के रूप में जितना कर जमा किया है उन्हें उस जमा राशि का 25 फीसदी रकम मुआवज़े के रूप में दिया जाए.
सुरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि इससे करदाताओं को राहत भी मिलेगी और सरकार के प्रति विश्वास भी बढ़ेगा. सुरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि अगर सरकार इस दिशा में पहल करती है तो आने वाले वक्त में इसका बड़ा फायदा वापस सरकार को ही मिलने की पूरी गारंटी है. दरअसल, सरकार के इस मदद से एक तरफ जहां जीएसटी के तहत आने वाले व्यापारियों को बल मिलेगा तो वहीं उन व्यापारियों को प्रेरणा मिलेगी जिन्होंने अब तक जीएसटी रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है. ऐसे में व्यापारियों की आखिरी उम्मीदें केंद्र की सरकार पर जा टिकी है. संकट के ऐसे दौर में केंद्र की एक छोटी सी मदद व्यापारियों को हुए नुकसान की भरपाई तो नहीं कर सकती लेकिन बड़ा सहयोग जरुर मिल सकता है. अब देखना ये है कि संकट के इस दौर से बाहर आने में मोदी सरकार व्यापारियों को किस तरह राहत पहुंचाती है.