बेगूसराय : राजनीतिक उठापटक के बाद आखिर कोटा में पढ़ रहे बेगूसराय समेत बिहार के अन्य जिलों के बच्चों की घर वापसी शुरू हो गई. कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों ने राहत की सांस ली है. लेकिन इसके साथ ही इस हॉट मामले ने राजनीति को भी कुछ हद तक हॉट कर दिया. कोरोना के कारण लॉकडाउन लागू होने के बाद, कोटा में मेस बंद होने तथा बच्चों के पैसे खत्म हो जाने के बीच कोरोना संक्रमित मरीजों की बढ़ती संख्या के साथ बच्चों में घर वापसी की सुगबुगाहट शुरू हुई.
विपक्षी दलों के बढ़ते दबाव, एक अभिभावक के पटना हाईकोर्ट पहुंचने के बीच कोटा में बिहारी छात्रों ने गांधीवादी तरीके से अनशन शुरू कर दिया तो इस मामले में सरकार की चुनौती बढ़ गई. करीब सभी राजनीतिक दलों ने कोटा के नाम पर अपने राजनीतिक की रोटी सेंकना शुरू कर दिया. कुछ लोग अपने प्रभाव के बल पर अपने वाहन से बच्चों को ले आए. इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने कोटा से बच्चों को बसों से लाने की घोषणा कर दिया और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संबंधित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से बच्चों को ले जाने का आग्रह किया. लेकिन बिहार सरकार ने नहीं माना. एनडीए के कुछ नेताओं में नाराजगी हो गई, पूर्व सांसद पप्पू यादव, तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर एवं उपेंद्र कुशवाहा के लगातार हमला जारी रखा. पड़ोसी राज्य झारखंड के मुख्यमंत्री ने कोटा से अपने लिए ट्रेन खुलवा दी. बिहार के सत्ताधारी सांसदों पर भी दबाव बढ़ने लगा.
इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कोटा में फंसे इन बच्चों का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री के निर्देश पर गृह मंत्रालय द्वारा विभिन्न राज्यों में फंसे बिहार के छात्र-छात्राओं और मजदूरों को कोरोना वायरस (कोविड-19) के प्रोटोकॉल के तहत ले जाने की अनुमति दे दी गई. इसमें बेगूसराय के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बाजी मार ली. सभी लोगों के प्रयास पर कोटा से बच्चों को लेकर बिहार के लिए सबसे पहली ट्रेन बरौनी (बेगूसराय) जंक्शन के लिए ही खुली.
वहीं, दूसरी ट्रेन कोटा से गया के लिए चली. इसके बाद भी जब कोटा में बिहार के बहुत अधिक बच्चों के रहने की जानकारी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को मिली तो उन्होंने रेलमंत्री से पहल कर बरौनी के लिए एक और ट्रेन चलवा कर बच्चों को राहत दे दिया है. फिलहाल सारी कवायद के बीच बेगूसराय समेत, खगड़िया, लखीसराय, शेखपुरा, जमुई, मुंगेर, भागलपुर एवं बांका के छात्र-छात्राओं को लेकर ट्रेन सोमवार की सुबह बरौनी जंक्शन पहुंच गई. यहां कड़े प्रशासनिक बंदोबस्त के बीच बेगूसराय के सभी बच्चों की प्रखंड स्तर जांच पड़ताल कर उसे 14 दिन के होम क्वारेन्टाइन में भेज दिया गया है. अगले चौदह दिनों तक लगातार स्वास्थ्य निगरानी की जाएगी.
इधर, बरौनी आए अन्य जिलों के बच्चों को संबंधित जिला के लिए भेज दिया गया है. सोमवार को अहले सुबह बरौनी जंक्शन पहुंचे मौसम, चांदनी, रश्मि, मुकेश, अमित समेत अन्य छात्र-छात्राओं का कहना है कि बिहार सरकार का इरादा हम बच्चों को वापस लाने का नहीं था. सरकार हमेशा कहती रही कि वहां संपन्न परिवार के बच्चे पढ़ने जाते हैं, इसलिए वहां कुछ नहीं दिक्कत होगी. लेकिन मेस बंद हो जाने, कोरोना संक्रमित मरीज बढ़ने के कारण पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था. तनाव के कारण नींद नहीं आने से डिप्रेशन के शिकार होने लगे. 15 साल से नीतीश कुमार की सरकार ने कुछ नहीं किया. बच्चे पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं, मरीज इलाज के लिए दूसरे प्रदेश पर निर्भर करते हैं और मजदूर रोजगार के लिए बाहर जाते हैं.
बच्चों का कहना है कि वहां काफी परेशानी हो रही थी. सरकार ने कुछ नहीं किया, सिर्फ कहानी कहती रही. दो महीने से पढ़ाई ठप, कोचिंग वाले भी मनमानी कर रहे थे. रास्ते में कोई व्यवस्था नहीं, दो-दो किलोमीटर समान लेकर पैदल चलना पड़ा. रास्ते में खाना पानी की कोई व्यवस्था नहीं, यहां बरौनी उतरे तो प्रशासन द्वारा नाश्ता-पानी दिया गया. इधर, अभिभावकों ने बच्चों को अपने पास देखकर राहत की सांस ली है. हालांकि, उनके चेहरे पर खुशी के साथ चिंता भी कि परीक्षा की तैयारी कैसे हो सकेगी.
जीवेश तरुण की रिपोर्ट