पटना: बिहार में बढ़ती ठंड केले के बागों को काफी प्रभावित कर रही है। जिससे केले कि पैदावार में लगभग 20 से 35 प्रतिशत तक कमी होने कि आशंका रहती है। जिससे केले उत्पादक किसान को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। इस समय ठंड धीरे-धीरे काफी बढ़ गयी है। जनवरी शुरू होते ही बढ़ती ठंड कि वजह केला के बहुत ज्यादा प्रभावित होने कि संभावना बनी रहती हैं। केला की खेती पर जाड़े का दुष्प्रभाव, केले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से पनपते हैं, जिनमें गर्म तापमान और उच्च आर्द्रता होती है। केले की वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान सीमा 78°F और 86°F (25°C और 30°C) के बीच है। हालाँकि, जब ठंडे तापमान के संपर्क में आते हैं, विशेष रूप से 50°F (10°C) से नीचे, तो केले विभिन्न तरह के नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसकी जानकारी पूसा डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ. एसके सिंह ने दी।
सर्दियों के दौरान पाले से होने वाली क्षति है प्राथमिक चिंता
सर्दियों के दौरान प्राथमिक चिंताओं में से एक है पाले से होने वाली क्षति। केले पाले के प्रति संवेदनशील होते हैं और ठंडे तापमान के संपर्क में आने से कोशिका क्षति हो सकती है। जिससे पौधे के ऊतक प्रभावित हो सकते हैं। पाले से होने वाले नुकसान के लक्षणों में काले या गूदेदार पत्ते और तने शामिल हैं। गंभीर मामलों में, पूरा पौधा प्रभावित हो सकता है, जिससे उपज में महत्वपूर्ण नुकसान होता है। ठंडे तापमान केले के पौधों की चयापचय प्रक्रियाओं को धीमा हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप वृद्धि और विकास कम हो जाता है, जिससे वनस्पति और प्रजनन दोनों चरण प्रभावित होते हैं। पौधे का विकास अवरुद्ध हो जाता है, और फूलों और फलों के निर्माण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। केला के पौधे का सक्रिय विकास रुक जाता है। जब निम्नतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है, तब पत्तियां पीली हो जाती हैं और गंभीर मामलों में, ऊतक मरने लगते है। बंच (गुच्छा) विकास सामान्य ढंग से नहीं होता है। ठंड की वजह से केले के वजन में घटोत्तरी हो रही है। केले के पौधों के विकास में भी बाधा उत्पन्न हो रही है। बढ़ती ठंड की वजह से केले का सही विकास नहीं हो पाता है, केले के बंच (घौद) सही से नहीं बढ़ पाते है। ऐसी हालत में केले के फिंगर (केला के फल)की लंबाई में कमी व केले की फलियों के मध्य की दूरी में भी कमी आती है।
तापक्रम हरहाल में 13-40 डिग्री के मध्य हो
केला की खेती के लिए आवश्यक है कि तापक्रम हरहाल में 13-40 डिग्री के मध्य हो। जाड़े में न्यूनतम तापमान जब 10 डिग्री सेल्सियस के नीचे जाता है, तब केला के पौधे के अंदर प्रवाह हो रहे द्रव्य का प्रवाह रुक जाता है। जिससे केला के पौधे का विकास रूक जाता है एवम् कई तरह के विकार दिखाई देने लगते हैं। फूल निकलने का समय जब कम तापमान के साथ मिल जाता है, तो गुच्छा आभासी तना (स्यूडोस्टेम) से बाहर ठीक से आने में असमर्थ हो जाता है। रासायनिक कारण भी “चोक” का कारण बन सकते है जैसे, कैल्शियम और बोरान की कमी भी इसी तरह के लक्षणों का कारण हो सकते है। पुष्पक्रम का बाहर का हिस्सा बाहर आ जाता है और आधार (बेसल) भाग आभासी तने में फंस जाता है। इसलिए, इसे गले का चोक (थ्रोट चॉकिग) कहा जाता है। ऐसे पौधे जिनमें फलों का गुच्छा उभरने में या बाहर आने में विफल रहता है, या असामान्य रूप से मुड़ जाता है जिसे थ्रोट चॉकिंग कहते है। केले ठंड लगने वाली चोट के प्रति भी संवेदनशील होते हैं, जो तब होता है जब तापमान शून्य से ऊपर होता है, लेकिन फिर भी इष्टतम सीमा से कम होता है। ठंडी चोट से फलों के छिलके का रंग खराब हो सकता है, गुणवत्ता कम हो जाती है। बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। ठंड बढ़ने के कारण केले का रंग गहरा पीला न होने की वजह से बाजार में ऐसे केलों को कोई नहीं खरीदता है।