रांची : आज मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा की 118वीं जयंती है. इस पर झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सह राज्य के वित्त तथा खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव, कृषि मंत्री बादल, सांसद धीरज प्रसाद साहू, विधायक राजेश कच्छप, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, पूर्व विधायक कालीचरण मुंडा, केशव महतो कमलेश, प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव और डा राजेश गुप्ता छोटू, सचिदानन्द चौधरी, आदित्य विक्रम जयसवाल और राम कृष्ण चौधरी समेत अन्य नेताओं ने आज खूंटी जिले के टकरा गांव स्थित जयपाल सिंह मुंडा के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया. सर्वप्रथम लोटा पानी से समाधि स्थल को धोया गया एवं पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई.
महान दूरदर्शी, विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक नेताओं में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा की जयंती समारोह पर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनके पैतृक गांव पहुंचे और समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर उनके दिखाये रास्ते पर चलने का संकल्प व्यक्त किया.
इस मौके पर प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा कि मरांग गोमके ने पूरे समाज के लिए आदर्श है, उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद 1928 में राजनीति में पहला कदम रखा और बाद में 1938 में आदिवासी महासभा का गठन गठन किया और पहली बार जनजातीय बहुल्य इलाकों के लिए झारखंड राज्य का उल्लेख किया. 1952 में आजादी के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में वे नेता प्रतिपक्ष बने और उनके द्वारा ही पहली बार अलग झारखंड राज्य की परिकल्पना की. उन्हीं की तरह दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने भी अलग झारखंड राज्य गठन को लेकर लंबे समय तक संघर्ष किया. रामेश्वर उराँव ने कहा कि 17 वर्षों की सरकार ने मारंग गोमके का एक स्मारक तक नहीं बना पाई,हमारी सरकार उनके परिजनों व ग्रामीणों से बात करके जयपालसिंह जी के सपनों को साकार करेगी.
इस मौके पर कृषिमंत्री बादल ने कहा कि राज्य सरकार और उनका विभाग मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के सपने को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है. किसानों की स्थिति कैसे सुदृढ़ हो, इसके लिए विभाग की ओर से आवश्यक कदम उठाए गए है. वहीं किसानों का कृषि ऋण माफ करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है.
सांसद धीरज प्रसाद साहू ने कहा आजाद भारत का गणतंत्र स्वरूप सुनिश्चित करने वाली सभा को सचेत करते हुए जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था आदिवासी इस दुनिया के सबसे गण तांत्रिक लोग हैं. इसलिए उन्हें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने की जगह उनसे लोकतांत्रिक विचार व्यवहार सीखना चाहिए. जयपाल सिंह झारखंड की नहीं पूरे भारतवर्ष के आदिवासियों के मसीहा माने जाते हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा के प्रयास से ही ट्राइबल सबप्लान को अमलीजामा पहनाया जा सका. राष्ट्रव्यापी सोच और उनकी दूरदर्शिता से जयपाल सिंह ने अलग झारखंड राज्य गठन की परिकल्पना की. लेकिन अलग झारखंड राज्य गठन के 20 में से 17 वर्षां तक भाजपा सत्ता में रही, उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया. इसलिए उनका गांव और पूरा राज्य निरंतर पिछड़ता चला गया.
इस मौके पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव और डा राजेश गुप्ता छोटू ने केंद्र और राज्य सरकार से यह आग्रह किया कि स्कूली पाठ्यक्रम में जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी को भी शामिल किया जाए, ताकि नई पीढ़ी को उनके संघर्षों और अलग झारखंड राज्य की लड़ाई के बारे में सही और पूरी जानकारी मिल पाए. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने आदिवासी परिवार में तीन जनवरी 1903 को खूंटी के तपकरा टकरा गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना शुरू कर दिया गया. बाद में उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गयी थी. जयपाल सिंह ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया. मरांग गोमके यानी ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन कर आदिवासियों के शोषण के विरूद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता लाल किशोरनाथ शाहदेव ने कहा कि महान दूरदर्शी और विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक पक्षधरों में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारत की जनजातियों के लिए वहीं है, जो बाबा साहब अंबेडकर का अनुसूचित जातियों के लिए है. आदिवासियों के लिहाज से कई मायनों में जयपाल सिंह मुंडा के योगदान उसे ज्यादा कहा जा सकता है.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि 50 के दशक में वे एकमात्र ऐसे राजनीतिक स्वप्नद्रष्टा हैं, जो देश में आरक्षण की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर जोर दे रहे थे. देश के आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और स्त्रियों के लिए जीने के समान अवसर की वकालत कर रहे थे. वे मानते थे कि नये भारत को अवसर की समानता पर बल देना चाहिए. हमें ऐसा प्रशासन तंत्र और कार्य प्रणाली विकसित करना चाहिए, जिसमें स्त्री, आदिवासी और जाति विरोधी राजनीति और समाज के लिए कोई जगह नहीं रह जाए.
बाद में प्रदेश कांग्रेस के सभी नेता जयपाल सिंह मुंडा के पैतृक गांव पहुंचे, जहां उनके पोते शिवराज जयपाल सिंह भी श्रद्धांजलि सभा में साथ साथ मौजूद रहे एवं कहा कि वे अपने दादा के अधूरे सपनों को पूरा करने का प्रयास करेंगे और कांग्रेस पार्टी जो भी जिम्मेवारी देगी, उसे वे पूरा करने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा कि भाजपा के शासन में दादा जी को कभी भी महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया.
गौरी रानी की रिपोर्ट