द एचडी न्यूज डेस्क : कोरोना कहर के बीच बिहार के गोपालगंज में खूनी खेल जारी है. इस वर्चस्व की लड़ाई में अबतक एक महीने में पांच लोगों की जान जा चुकी है जिसमें हथुआ के एक ही परिवार के तीन लोग भी शामिल हैं जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हमले में घायल एक शख्स का पटना के PMCH में इलाज चल रहा है जो इस हत्याकांड का मुख्य गवाह भी है. अपने गृह जिले यानी गोपालगंज में चल रहे इस हिंसा के बहाने आरजेडी के युवराज और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ना सिर्फ नीतीश सरकार पर हमला बोला है बल्कि इस ट्रिपल मर्डर केस को नरसंहार बताकर नीतीश सरकार की घेराबंदी करने में भी लगे हैं.
ट्रिपल मर्डर को नरसंहार बता चुके हैं तेजस्वी
तेजस्वी यादव इस मामले को लेकर कितना संजीदा हैं इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि तेजस्वी का 14 दिनों का होम क्वारंटाइन पीरियड बुधवार की सुबह ही खत्म हुआ और तेजस्वी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानन्द सिंह के साथ आनन-फानन में घायल जेपी यादव से मिलने पीएमसीएच पहुंच गए और फिर इस ट्रिपल मर्डर को एक नरसंहार बता दिया. तेजस्वी इस हत्याकांड को किस तरह से अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे ये हम आपको आगे बताएंगें लेकिन पहले हम आपको ये बताए देते हैं कि आखिर इस खूनी संघर्ष और गैंग्स ऑफ हथुआ के पीछे की क्या असल कहानी है.
शहाबुद्दीन बनाम सतीश पांडेय है लड़ाई
दरअसल, गोपालगंज जिले में हथुआ एक विधानसभा क्षेत्र है जहां लंबे समय से रेलवे के रैक को लेकर दो गुटों में हिंसक झड़प और वर्चस्व की लड़ाई होती रही है. इसमें दोनों ही तरफ के लोगों का खून भी बहता रहा है. ये लड़ाई पिछले 3 दशकों से चली आ रही है और आज भी जारी है. 90 के दशक में कुख्यात सतीश पांडेय और बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के बीच इसी रेलवे रैक पर अपना दबदबा कायम करने और लेवी वसूलने को लेकर कई बार हिंसक झड़पें हुई थीं. इस वर्चस्व की लड़ाई में कइयों की जानें भी गई. उस दौर में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी क्योंकि उस दौरान बिहार में लालू यादव की सरकार थी और मोहम्मद शहाबुद्दीन को लालू और उनके रसूख का खुलकर सहयोग मिलता था लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया और 2005 में बिहार में तख्तापलट हुआ शहाबुद्दीन कमजोर होते गए और फिर कुख्यात सतीश पांडेय का रेलवे के रैक पर पूरा साम्राज्य स्थापित हो गया.
2005 में अमरेन्द्र की हुई सत्तारूढ दल में इंट्री
2005 में जब बिहार में नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई तब कुख्यात सतीश पांडेय का छोटा भाई अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय जेडीयू के सिंबल पर चुनाव जीतकर सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक चुन लिया गया और फिर तब से अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडे की हथुआ और समूचे गोपालगंज में हुकूमत चलने लगी. रेलवे के रैक से लेकर पूरे गोपालगंज में कोई भी विकास का कार्य होना हो तो जिला प्रशासन की अनुमति के बाद भी कांट्रेक्टर या बिजनेसमैन को बाहुबली विधायक पप्पू पांडे की इजाजत लेनी पड़ती है. पिछले 3 दशकों से ये सिलसिला आज भी जारी है और फिर अपनी हूकूमत और दबदबा कायम रखने के लिए आज भी वर्चस्व की लड़ाई या फिर खूनी संघर्ष चल रहा है.
कमजोर पड़ा शहाबुद्दीन तो तेजस्वी के करीबी सुरेश चौधरी ने संभाल ली कमान
शहाबुद्दीन लंबे समय से चूंकि जेल में बंद हैं ऐसे में विधायक पप्पू पांडे इन दिनों और भी ज्यादा मजबूत हो गए हैं. फिर भी शहाबुद्दीन के बाद कुख्यात सुरेश चौधरी उर्फ संजय जैसे लोग विधायक पप्पू पांडेय को खुली चुनौती दे रहे हैं. सुरेश चौधरी इन दिनों तेजस्वी यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. बताया ये भी जा रहा है कि ट्रिपल मर्डर में मारे गए सभी तीन लोग और घायल जेपी यादव कुख्यात सुरेश से ही ताल्लुक रखते थे. इसमें जेपी यादव जो पहले वामदल का नेता हुआ करता था भी इन दिनों आरजेडी में शामिल हो चुका है और अगले साल होनेवाले नगर परिषद के चुनाव में एक मजबूत दावेदार भी है.
अब राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश
इस हत्याकांड के पीछे आर्थिक और राजनीतिक रंजिश दोनों ही मजबूत कारण हैं. ये और बात है कि अपने सियासी फायदे के लिए तेजस्वी यादव इस हत्याकांड को एक नरसंहार का रूप दे रहे हैं ताकि नरसंहार बताकर चुनावी साल में इसे खूब भुनाया जा सके और फिर नीतीश कुमार की सुशासन वाली सरकार पर यह आरोप भी लगाया जा सके कि जो नीतीश कुमार लालू-राबड़ी के 15 साल की सरकार को नरसंहारों से जोड़कर जंगलराज कहा करते थे दरअसल उनकी सरकार में भी तो नरसंहार हुए हैं वो भी जब कोरोना को लेकर समूचे बिहार भर में लाकडाउन है और प्रशासन अलर्ट पर है.