भारत-नेपाल के बीच बिजली निर्यात समझौता, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नेपाल के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से की मुलाकात ।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नेपाल के राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल और प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड से मुलाकात की। इस दौरान दोनों पक्षों ने सदियों पुराने और बहुआयामी नेपाल-भारत संबंधों पर चर्चा की। जयशंकर इस साल अपनी पहली विदेश यात्रा के तहत नेपाल पहुंचे हैं। उन्होंने संपर्क पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, इस प्रकार, भारत-नेपाल संबंध वास्तव में विशेष हैं और हमारी साझेदारी लगातार सफलता की ओर बढ़ रही है।
दोनों नेताओं ने संयुक्त रूप से तीन सीमा पार ट्रांसमिशन लाइनों का भी उद्घाटन किया। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों, कनेक्टिविटी, व्यापार और पारगमन, बिजली और जल संसाधन, शिक्षा, संस्कृति और राजनीतिक मामलों पर भी चर्चा हुई। प्रधानमंत्री प्रचंड की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बिजली निर्यात पर सहमति बनी। प्रचंड पिछले साल 31 मई से 3 जून तक भारत की यात्रा पर थे। उस समय, दोनों पक्षों ने कई प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें अगले 10 वर्षों में पड़ोसी देश से भारत के बिजली आयात को 10,000 मेगावाट तक बढ़ाने का समझौता भी शामिल था। वर्तमान 450 मेगावाट।
ऐतिहासिक बिजली निर्यात समझौते पर हस्ताक्षर:
जयशंकर और नेपाल के ऊर्जा, जल संसाधन और सिंचाई मंत्री शक्ति बहादुर बस्नेत के बीच बैठक में बिजली निर्यात समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। मालूम हो कि नेपाल ने यह समझौता चीन को दरकिनार कर किया है। इस डील का बीजिंग लगातार विरोध कर रहा था और उसने नेपाल को डराने की भी कोशिश की थी। भारत और नेपाल के बीच यह समझौता 25 साल के लिए है, जिससे दोनों देशों के बीच बिजली व्यापार का रास्ता खुल जाएगा। मालूम हो कि भारत ने नेपाल को कई जलविद्युत परियोजनाएं विकसित करने में मदद की है। इसके अलावा कुछ और परियोजनाएं अभी पाइपलाइन में हैं। इससे निश्चित तौर पर दोनों देशों के आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं।
जलविद्युत क्षेत्र पर चीन की नजर:
नेपाल के साथ भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है। नई दिल्ली में राजनेताओं द्वारा भी इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है। उधर, चीन ने भी नेपाल के भीतर अपनी सक्रियता पहले से ज्यादा बढ़ा दी है। बेल्ट एंड रोड नामक चीनी पहल के माध्यम से नेपाल में सड़कों का निर्माण किया गया है। बीजिंग की नजर अब जल विद्युत क्षेत्र पर है। फॉरेन पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, एशिया की दो बड़ी ताकतों चीन और भारत के बीच नेपाल खुद को असहज पाता है। नेपाल पर राजनीतिक प्रभाव के लिए बीजिंग और नई दिल्ली के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है। ऐसे में अब दोनों की नजर देश के जलविद्युत क्षेत्र पर है। 6000 नदियों के साथ नेपाल 42,000 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता रखता है।