BANKA: देशभर में शारदीय नवरात्र की धूम है। उत्सव का माहौल है। ऐसे में आपको यह भी जानना चाहिए कि बिहार के अंग प्रदेश में इकलौता शक्तिपीठ बांका जिले के शंभूगंज प्रखंड में है। छत्रहार पंचायत के हरवंशपुर गांव में दुर्गा पूजा से यहां न सिर्फ बिहार के बांका, भागलपुर और मुंगेर जिले से सबसे ज्यादा श्रद्धालू पहुंचते हैं बल्कि बिहार की समीप झारखंड राज्य के कई जिले जैसे साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़, देवघर, दुमका एवं संथाल परगना के हजारों श्रद्धालू यहां आते हैं।
श्रीश्री 108 कृष्ण काली भगवती हरवंशपुर, तिलडीहा में माँ दुर्गा की पूजा तात्रिक एवं वैष्णवी दोनों रूपों में होती है। मां के वैष्णवी रूप की पूजा दशमी को होती है। यहां पाठा बलि के कारण पूजा दस दिनों तक होती है। बारह प्रकार के अनाज को मिट्टी में मिलाकर उसपर कलश स्थापित किया जाता है। एक आचार्य कलश के पास एवं प्रतिमा वेदी के जगह एक पंडित दुर्गा जी का पाठ करते हैं।
किस पूजा को क्या होता यह जनाना है जरूरी
कलश स्थापना के समय भी जोड़ा पाठा की बलि दी जाती है। दो एवं तीन पूजा को केवल चंडी पाठ होता है। चौथे पूजा को प्रतिमा की प्रथम रंगाई उजले खल्ली से की जाती है। पाचवीं पूजा को मां के मुख पर पान छुलाकर पान खिलाने का रस्म किया जाता है। छह पूजा के दिन जुड़वा बेल, मैंन का पत्ता, अशोक का पत्ता, केला का थंभ मेंसन की डोरी को मिलाकर बांध दिया जाता है। संध्या समय देवी का आह्वान किया जाता है। रात्रि में इसे पिंड पर रखा जाता है। नवरात्र के सातवें दिन दो कुंवारे लड़के को कच्चे बास की डोला बनाकर नदी ले जाते हैं। वहां विधि पूर्वक डोला का स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद उसकी स्थापना मान पत्रिका के रूप में होती है। डोला के साथ नदी से नया कलश भी लाया जाता है।
जिसकी पिंड के पास स्थापना होती है। रात्रि में प्रतिमा को पिंड पर स्थापित किया जाता है। चक्षुदान के समय मंदिर बंद रहता है। मंदिर के दरबाजे पर दो काला पाठा रखा जाता है। चक्षुदान के बाद जब भगवती का पट खुलता है तो देवी की नजर उसी जोड़ा काला पाठा पर पड़ता है। चक्षुदान के समय मंदिर के गर्भ गृह में केवल मेंढपती परिवार के सदस्य, एक पंडित एवं एक नाई ही रहते हैं। आपको बता दें कि अष्ठमी से श्रद्दालूओं की भीड़ बढ़ती जाती है। जिसमें तीन दिनों तक विशेष तौर पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। माता के पट खुलते ही दर्शनार्थियों का तांता लगने लगता है। यहां मनोकामना के रूप में मन्नत के तौर पर पांच हजार पाठा बलि और भैंसे की बलि दी जाती है।
कुमार गौतम की रिपोर्ट