PATNA: मदर्से डे पर आज हम आपको एक ऐसे मां की कहानी बताने जा रहे है जो हकीकत है महिला सशक्तिकरण की। हकीकत है पुरूषों से कंधा से कंधा मिलाकर चलने की। जब किसी परिवार मुखिया पुरुष शारीरिक रूप से काम करने लायक नहीं रहता है, किसी कारण वह अपने परिवार को बोझ नहीं उठा पाता है तो कैसे एक महिला घर की दहलीज को पार कर बन जाती है मदर इंडिया।
हम एक ऐसी महिला की कहानी आपको बताना चाह रहे हैं जो पिछले सात सालों से मालवाहक वाहन से लेकर ऑटो रिक्शा चलाकर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण की जिम्मेवारी उठा रही है, बल्कि अपने बीमार पति का इलाज के साथ अपने एक बेटे और एक बेटी को शिक्षा दिलाने का काम कर रही है। पति के बीमार पड़ने के बाद घर की माली हालत नाजुक होने पर पूनम चौधरी ने स्वयं कमाने का बीड़ा उठायी और पहले तो पांच सालों तक छोटे-छोटे मालवाहक वाहन को चलायी और फिर दो सालों से ऑटो रिक्शा चलाकर अपने परिवार का लालन पालन की जिम्मेवारी का निर्वहन कर रही है।
पूनम चौधरी बिहार के भागलपुर जिले की रहने वाली है जो प्रतिदिन जगदीशपुर से यात्रियों को लेकर भागलपुर तक लाती है और फिर भागलपुर शहर में ऑटो रिक्शा चलाने के बाद शाम को जगदीशपुर जाने वाले यात्रियों को लेकर जाती है। सामाजिक ताना सुनने के बावजूद वह अपना हौसला नहीं खोई और आज भी अपनी जिम्मेवारी बखूबी निभा रही है। जबकि उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी या गैर सरकारी सहायता नहीं मिली। ऐसी ही नारी सशक्तिकरण के साथ पारिवारिक दायित्व का निर्वहन कर मिसाल पेश कर रही।
भागलपुर से सहयोगी कुणाल के साथ पटना से संजय कुमार की रिपोर्ट