दुमका : झारखंड की उपराजधानी दुमका में आज दो फरवरी को झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का 43वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. दो फरवरी, 1977 को दुमका में पहली बार झामुमो का स्थापना दिवस मनाया गया था. तबसे हर साल यहां झामुमो का सालाना जलसा होता है. जलसे में भाग लेने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन दुमका पहुंच गए हैं. दुमका के गांधी मैदान में समारोह होगा. कार्यक्रम स्थल पर झामुमो नेताओं और कार्यकर्ताओं का पहुंचना शुरू होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झामुमो के स्थापना दिवस पर राज्य की जनता को बधाई दी है.
धनबाद में 4 फरवरी, 1973 को झामुमो की पड़ी नींव
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना धनबाद में चार फरवरी, 1973 को हुई थी. शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो-इन तीन लोगों ने मिलकर झामुमो की स्थापना की. शिबू सोरेन झामुमो अध्यक्ष हैं. आज झामुमो झारखंड की सत्ताधारी पार्टी है. धनबाद में झामुमो की स्थापना के बाद झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन ने दो फरवरी, 1977 को दुमका में दुमका जिला कमेटी गठित की थी. उसी दिन से दुमका में स्थापना दिवस मनाया जाता है.
मुख्यमंत्री ने गिनाई अपनी प्राथमिकता
सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को खिजुरिया स्थित आवास पर जनसमस्याओं को लेकर गुहार लगाने पहुंचे लोगों को भरोसा देते हुए कहा कि उनकी समस्याओं का समाधान सरकार की प्राथमिकता है. मुख्यमंत्री ने इस दौरान कई आवेदनों पर फौरी कार्रवाई की. जबकि, विभिन्न समस्याओं से जुड़े आवेदनों पर त्वरित कार्रवाई के लिए मौके पर मौजूद उपायुक्त रविशंकर शुक्ला को आवश्यक निर्देश दिया. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आपकी सरकार है. आपकी समस्याओं का हरहाल में निदान होगा. कहा कि सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से योग्य लाभुकों को योजना लाभ देने का कार्य कर रही है. मौके पर महेशपुर के विधायक प्रो. स्टीफन मरांडी, दुमका के विधायक बसंत सोरेन भी मौजूद थे.
इस साल भी रात नहीं दिन में मनेगा झामुमो स्थापना दिवस
दुमका के शिकारीपाड़ा विधानसभा से लगातार छह बार विधायक और राज्य में कृषि मंत्री रहे नलिन सोरेन दो फरवरी के शुरुआती दिनों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं. सोमवार को पाटी सुप्रीमो शिबू सोरेन के खिजुरिया स्थित आवास पर बातचीत के क्रम में कहते हैं कि तब वह महज एक कार्यकर्ता थे. पहली बार वर्ष 1977 में दुमका के एसपी कालेज में दो फरवरी को स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी. उस वक्त संसाधनों की घोर कमी थी. पूरे संताल परगना में आवागमन की सुविधा भी नहीं थी. तब संचार तंत्र का भी कोई अता-पता नहीं होता था. ऐसे में ग्रामीणों को सूचना व न्यौता भेजने के लिए संताली परंपरा के तहत ढरुअ घुमाया जाता था.
आपको बता दें कि ग्रामीण हाटों में एक लंबा डंडा में हरे पत्तों को बांधकर संताल समुदाय के संदेश या निमंत्रण देने की परंपरा को ढरुअ के नाम से पुकारा जाता है. नलिन कहते हैं कि जब ढरुअ घुमाया जाता है तब ग्रामीण पूछते हैं कि कौन-सा संदेशा है. तब उन्हें संदेश के बारे में जानकारी दी जाती है. उस समय पार्टी सुप्रीमो इसी के जरिए ग्रामीणों के बीच संदेश भेजवाने की शुरुआत किए थे. कहा कि पहले स्थापना दिवस में गुरुजी का संदेश मिलने पर संताल परगना के कोने-कोने से बड़ी संख्या में लोग एसपी कालेज मैदान में जुटे थे. परंपरागत वेशभूषा, ढोल-ढमाक व तीर-धनुष के साथ ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी.
गौरी रानी की रिपोर्ट