उज्ज्वल त्रिवेदी, मुंबई
मुंबई: अगर कोई अपनी ऑटोबायोग्राफी का नाम खुल्लम-खुल्ला रखें और खासकर तब जब वो ऐसी दुनिया से ताल्लुक रखता हो, जहां सारा खेल इमेज का हो। जहां लोग अपनी बनावट की छवि का इस्तेमाल लोकप्रियता पाने के लिए करते हैं, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह व्यक्तित्व कितना बेबाक होगा। कुछ ऐसे ही थे ऋषि कपूर। अपनी बात साफ कहना खुलकर कहना वह जानते थे। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि कोरोना काल के दौरान शराब की दुकानें खोल देनी चाहिए, क्योंकि इससे लोगों को अपना दिल हल्का करने का मौका मिलेगा। आप बताइए कौन सा ऐसा सितारा है बॉलीवुड में जो हमारे समाज में इस तरह की बात खुलेआम करने की हिम्मत रखता है। एक छोटा सा उदाहरण है यह बताने के लिए कि ऋषि कपूर का व्यक्तित्व कैसा था।
मैंने जब उनकी ऑटो बायोग्राफी खुल्लम-खुल्ला पढ़ी तो उसमें एक मजेदार किस्से का जिक्र है कि जब पहली बार तंगी की हालत में राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर को बॉलीवुड में हीरो लेने की बात सोची और उनको पहली बार यह बताया तो यह सुनकर ऋषि कपूर साहब सीधे अपने कमरे में गए और ऑटोग्राफ देने की प्रैक्टिस करने लगे। असल में उनके बचपन का सपना था एक कलाकार बनना। वह बचपन से फिल्मों में आना चाहते थे और जब बॉलीवुड में शुरुआत हुई तो पहली फिल्म ही सुपर डुपर हिट हो गई। वह रातोंरात स्टार बन गए ऋषि कपूर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में साफ लिखा है कि उस कामयाबी ने उनका दिमाग खराब कर दिया था और वह खुद को वाकई बहुत बड़ा स्टार समझने लगे थे। उनका ऐसा लिखना इस बात को साबित करता है कि वह कितने साफ हैं। अपने दिल में उन्होंने कुछ भी नहीं रखा जैसा सोचा जैसा समझा उसको साफ किया। अपने आप में ही एक ऐसा गुण है जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता है। खासकर उन लोगों में जो कि इमेज के बिजनेस में होते है। मुझे याद है एक फिल्मी पार्टी के दौरान वह अपनी गाड़ी से उतरे और जब वह अपनी गाड़ी से उतरे तो उनके हाथ में एक गिलास था। कहने की जरूरत नहीं है कि उस ग्लास में क्या था? सितारे जहां पार्टी में आने के बाद इंजॉय करना शुरू करते हैं। ऋषि कपूर इतने जिंदादिल थे कि वह जब अपने घर से उस पार्टी में शरीक होने के लिए पहुंचे तो हाथ में गिलास पहले से ही मौजूद होता था। उनकी अदा यह बताने के लिए काफी है कि उनकी सोच कैसी थी। वो बिल्कुल जिंदादिल थे वो खाने खिलाने के शौकीन रहे, वो यारों के यार थे और एक ऐसे व्यक्ति की तरह जिए जो खुलकर जीने में यकीन रखता हो।
जैसे आम तौर पर मियां बीवी के बीच झगड़े होते हैं और उन्हें बातचीत बंद हो जाती है, वैसा ही कुछ नीतू और ऋषि कपूर के बीच भी होता था और इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी किताब खुल्लम-खुल्ला ने साफ किया है। उन्होंने लिखा कि फिल्म जब तक है जान के दौरान साल 2012 में उनकी और नीतू जी के बीच बातचीत बंद थी तब भी वह फिल्म में साथ काम कर रहे थे। कुछ ऐसा ही दौर पहले भी आया था जब ये दोनों फिल्म ‘झूठा कहीं का’ एक गाने जीवन के हर मोड़ पर शूट के दौरान दोनों के बीच बातचीत नहीं होती थी। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि जब कोई अपने कड़वे पलों को भी याद रख पाए। उनके बारे में बात कर पाए और उनसे कुछ सीख देने की बात करें। साल 2015 में अपनी शादी की 35 वीं सालगिरह ऋषि कपूर और नीतू कपूर नहीं मना सके क्योंकि उन दिनों ऋषि कपूर, परेश रावल के साथ पटेल की पंजाबी शादी नाम की फिल्म में काम कर रहे थे। उनके पास वक्त नहीं था और दोनों के बीच बातचीत बंद लेकिन इस सब के बाद भी दोनों ने एक दूसरे का साथ निभाया और एक दूसरे को समझने की हर बार कोशिश की। ऋषि कहते हैं कि ऊपर वाले पर उनका विश्वास हमेशा से रहा है और वह हमेशा से ही रोजाना पूजा करते रहे। फिर भी उन्होंने कहा कि उनके धर्म और उनके भोजन का कोई सीधा संबंध नहीं है वह बीज खाने वाले हिंदू के तौर पर ही जाने जाते हैं क्योंकि उनका मानना था कि भोजन का संबंध किसी तरह की श्रद्धा या धर्म से नहीं हो सकता। यह सारी बातें बार-बार एक बात कहती हैं कि वह व्यक्ति बहुत साफ दिल का था।