नयी दिल्ली: कोरोना वायरस की महामारी से बचने तथा लोगों के बीच संक्रमण न फैले, इसे लेकर केंद्र सरकार ने लॉकडाउन का कदम उठाया। जाहिर है इस कदम से समाज के हर तबका प्रभावित हुआ लेकिन सबसे ज्यादा परेशान वह हुए, जो रोज कमाते और खाते हैं। बिहार के दरभंगा जिले के पंचोभ गांव के निवासी हरबंश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
और शुरू हो गया बिहार तक का सफर
हरबंश बताते हैं, लॉकडाउन की जैसे ही घोषणा हुई तो इस बात की चिंता हुई कि अब कल से क्या खाउंगा। बिना कमाई कैसे जीवन कटेगा। रोजाना कमाता था और खाता था। उसे लगा कि अगर इसी तरह मुंबई में रह गया तो खाए बिना मर जाउंगा इसलिए यही सोचकर बिहार अपने गांव की ओर निकल गया। रास्ते में पुलिस वाले ने 200 रुपये खाने के लिए भी दिए। क्या दिन और क्या रात बिना थके लगातार चलता रहा। रास्ते में लोगों ने खिलाया और कभी पानी पीकर भी आगे बढ़ना पड़ा। इस दौरान पैर के तलवे फट गए लेकिन रुका नहीं। मुंबई से आते वक्त कुछ दूर तक तो ट्रेन मिली लेकिन चंद घंटों में ही ट्रेन से उतरा पड़ा क्योंकि ट्रेन रद्द हो गयी थी और फिर लगातार पैदल चलकर घर पहुंचा। दरभंगा के पंचोभ गांव के हरबंश की ये कहानी है जो मुंबई में श्रमिक का काम करते थे लेकिन कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने उन्हें डरा दिया। फिर पैदल गांव जाने के सिवा उन्हें कुछ नहीं सूझा।
लॉकडाउन की खबर सुनकर उड़ गये होश
हरबंश कहते हैं, कोरोना महामारी के कारण 24 अप्रैल को जैसे ही देशव्यापी लॉकडाउन की सूचना मिली उनके होश उड़ गए। पंचोभ पंचायत के मुखिया बताते हरबंश रोजाना कमाते और खाते थे। वह गांव से मुंबई मजदूरी करने गए थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद उनके सामने समस्या ये थी। हरबंश ने बताया कि अगर गांव नहीं आते तो मुंबई में खाने के बिना मर जाते। इसलिए लॉकडाउन की घोषणा होने के साथ ही 32 साल का यह शख्स मुंबई के रेलवे स्टेशन ओर भागा। वहां से जाने वाली एक ट्रेन में वह बैठ गए। ट्रेन कुछ दूर ही चली होगी कि उसे रद्द कर दिया गया। उसके बाद उन्होंने लगातार पैदल चलना शुरू किया। उनके साथ तीन और मजदूर साथी थे, जो बिहार के ही थे। सभी ने ठान लिया कि पैदल ही अब गांव जाना है और मजबूरन पैदल चलना शुरू किया।
एक पुलिसवाले ने दिए 200 रुपये
हरबंश रास्ते में लोगों से बिहार जाने का रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ते गए। इस दौरान रास्ते में पुलिस वाले भी मिले लेकिन किसी ने परेशान नहीं किया। हरबंश ने बताया कि एक दयालू पुलिस वाले ने जब उनकी व्यथा सुनी तो रास्ते में खर्च के लिए 200 रुपये भी दिए। रास्ते में सड़कों को किनारे गांव के लोगों ने भी खाने में मदद की और फ्री में खाना खिलाया। कई बार ऐसा भी हुआ कि बिना खाए आगे बढ़ता गया और पानी के सहारे समय काटना पड़ा। जब भी थकान बहुत ज्यादा हुई तो रास्ते में पेड़ के नीचे सोना पड़ा। लेकिन मन में एक ही लालसा थी कि किसी तरह से अपने गांव पहुंच जाऊं ताकि जीवन बच जाए।
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