द एचडी न्यूज डेस्क : बिहार सरकार के प्रवासी मज़दूरों को राहत पहुंचाने संबंधित दावे की वास्तविकता और खंडन प्रतिदिन खुद फंसे हुए ग़रीब मज़दूर कर रहें है. हर रोज़ के अख़बार, टीवी और सोशल मीडिया इत्यादि पर इनकी सैकड़ों आपबीती और व्यथा की खबरें मिलती हैं. अगर सरकार वाक़ई मदद कर पा रही है तो फिर ये कौन लोग हैं?
अगर मान लें कि प्रत्येक ज़िले से कम से कम 30 हज़ार लोग बिहार से बाहर मज़दूरी/नौकरी कर रहें तो पूरे राज्य से तक़रीबन 11.40 लाख लोग बाहर हैं. सरकार के दावे के मुताबिक़ तो इससे ज़्यादा लोगों को सहायता राशि मिल चुकी है फिर ये लोग क्यों गुहार लगा रहें है? इसका सीधा मतलब ये है कि इसमें भी गोलमाल है.
सहायता राशि के लिए सरकार ने “लाभार्थी का बैंक खाता बिहार का होना चाहिए” के रूप में एक ऐसी शर्त रखी है जिससे ज़्यादातर लोग अभी तक वंचित हैं. जहां ये मज़दूर काम करते हैं उनके मालिक वहीं खाता खुलवा देते हैं तो अब बेचारे बिहार का खाता कहां से लाएं? सरकार को इस शर्त को संशोधित करते हुए बिहार का आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड इत्यादि का विकल्प जोड़ना चाहिए ताकि जो इससे छूट गए है उनको भी ये सहायता राशि मिले. इसके अतिरिक्त मैं सरकार से ये भी मांग करता हूं कि लॉकडाउन के दौरान बाहर में एकमुश्त दिए जाने वाले 1000 रूपया में 3-4 दिन से ज़्यादा का गुज़र बसर नहीं हो सकता इसलिए यह राशि अनिवार्य रूप से साप्ताहिक अंतराल पर देनी चाहिए.