जीवेश तरूण, बेगूसराय
बेगूसराय: देश में लागू लॉक डाउन का असर अब बाहर मजदूरी करने वाले लोगों पर साफ-साफ दिखने लगा है । ताजा मामला बेगूसराय के बखरी अनुमंडल से जुड़ा बताया जा रहा है। जहां दिल्ली से पैदल लौट रहे एक ड्राइवर की भूख से मौत हो गई। बनारस में हुई इस मौत के बाद लॉक डाउन की वजह से न तो उनके परिजन मृतक से मिल पाए न ही शव का अंतिम संस्कार हो पाया। अहम यह है कि जहां बनारस में प्रशासन द्वारा मृत व्यक्ति के शव का संस्कार किया गया वहीं परिजनों ने कोरोना संक्रमण के भय से शव को लेने से भी इनकार किया था और बाद में गांव में ही कुश की प्रतिमूर्ति बनाकर हिंदू रीति रिवाज से मृत युवक का संस्कार किया गया। प्राप्त खबर के अनुसार जिले के रामजी महतो तीन अप्रैल को दिल्ली से पैदल अपने घर के लिए निकले थे, लेकिन 16 अप्रैल को वाराणसी में चलते-चलते उनकी मौत हो गई। बदनसीबी का आलम यह था कि जिन घर वालों तक पहुंचने के लिए रामजी पैदल निकल पड़े थे, उनके पास शव लेने और दाह संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे। वाराणसी पुलिस ने दाह संस्कार किया।
मामला वाराणसी के रोहनिया थाना क्षेत्र का है। उस समय रोहनिया थाने में तैनात चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ही वे व्यक्ति थे जो रामजी महतो से आखिरी बार मिले थे। उन्होंने बताया कि 16 अप्रैल को सुबह छह बजे मुझे पता चला कि एक मजदूर सड़क पर गिरा है। जब उसके पास पहुंचा तो उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थीं। मैंने तुरंत एंबुलेंस बुलाया, लेकिन एंबुलेंस वाला देखते ही डर गया। उसे लगा कि कहीं ये इसे कोरोना तो नहीं है। मैंने रिक्वेस्ट करके किसी तरह सावधानी से उन्हें एंबुलेंस में लिटाया ही था कि उनकी सांसे थम गईं। वे आगे बताते हैं, इसके बाद मैंने उनके परिजन के घर फोन किया था तो उन्होंने कहा कि हम यहां अकेले हैं और हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वहां तक आ पाएंगे। हमने रामजी महतो का कोरोना टेस्ट भी कराया जो कि निगेटिव निकला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी आई नहीं है। रिपोर्ट के बाद ही पता चला पायेगा कि मौत की मुख्य वजह क्या है।