देश की राजनीति से एकदम उलट चलने वाली बिहार की सियासत की हवा फिर बदली-बदली सी है।बिहार में राज्यसभा की 5 सीटों पर चुनाव है. जिसके लिए बीजेपी और आरजेडी ने ब्रह्मजन को अपना उम्मीदवार बना कर बिहार की चुनावी फिजा के रूख को पलट दिया है। बीजेपी ने जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री सह सांसद डॉ सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को मौका दिया है वहीं हर किसी के आंकलन को गलत साबित करते हुए राष्ट्रीय जनता दल ने भी इसी समाज के एक कद्दावर शख्सियत अमरेंद्रधारी सिंह को उम्मीदवार बना कर सुर्खियां बटोर ली है.
कौन है अमरेंद्रधारी सिंह
सबसे ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर है कि राष्ट्रीय जनता दल ने ब्रह्मजन समाज से ताल्लुक रखने वाले अमरेंद्र धारी सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। आरजेडी ने अमरेंद्रधारी को राज्यसभा भेजने का एलान क्या किया राजनीति के गलियारों में चर्चा तेज हो गई। दरअसल बिहार के सियासी गलियारों में अब तक अंजान रहे अमरेंद्रधारी सिंह को राष्ट्रीय जनता दल ने समाजसेवी कह कर टिकट दिया है जबकि अमरेंद्रधारी सिंह की पहचान एक बड़े कारोबारी के रूप में है और देश के कई शहरों में उनका बिजनेस फैला हुआ है। कॉरपोरेट जगत में एडी सिंह के नाम से जाने जाने वाले अमरेंद्र की गिनती देश के बड़े बिजनेस मैन में होती है। वह कंस्ट्रक्शन, इंफ्रास्ट्रक्चर, केमिकल फर्टिलाइजर, फूड बेवरेज तथा रियल स्टेट से जुड़ी कई कंपनियों के निदेशक भी हैं।

अचानक हुआ बदलाव
बीजेपी ने सीपी ठाकुर के बेटे को राज्यसभा भेजने का फैसला कर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सवर्णों की नाराजगी के सवालों को फिर उठने सो रोकने की कवायद की है. दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार बीजेपी के कई सवर्ण नेताओं ने पार्टी पर सवर्णों की उपेक्षा का आरोप लगाया था. बागियों की इसी कतार में बीजेपी के एमएलसी और ब्रह्मजन समाज के कद्दावर नेता सच्चिदानंद राय का भी नाम सामने आया था . सच्चिदानंद राय ने पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि पार्टी सबका विकास तो कर रही है लेकिन सबको साथ लेकर नहीं चल रही है. सच्चिदानंद राय के ब्रह्मजन समाज की उपेक्षा की शिकायत को दूर करने के लिए बीजेपी आलाकमान ने पहले एमएलसी के तौर पर ब्रह्मजन समाज से ताल्लुक रखने वाले राधामोहन शर्मा को चुना। इसके बाद इसी समाज से राज्यसभा सदस्य के रूप में सतीश दुबे को उम्मीदवार बनाया गया। विवेक ठाकुर को राज्यसभा भेजने के बीजेपी के फैसले को सच्चिदानंद राय सरीखी बगावत को रोकने का प्रयास ही माना जा रहा है.

दूसरी ओर लालू यादव की आरजेडी की राजनीति वैसे वोट बैंक के करीब घूमती रही है जिनके बल पर राजद बिहार में 15 सालों तक शासन कर चुका है। ऐसी पार्टी जिसका वोट बैंक मुस्लिम और यादव के इर्दगिर्द घूमती रही हो, उसका ब्रह्मजन समाज से राज्यसभा के लिए उम्मीदवार खड़ा करना एक चौंकाने वाला कदम जरुर लगता है। जाति आधारित राजनीति के लिए मशहूर बिहार में अगर वोट की जातिगत ताकत पर गौर करें तो सबसे ज्यादा आबादी ओबीसी समुदाय की है यानि इस समुदाय का वोट करीब 51 फीसद है। जबकि यादव समुदाय 14.4%, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4%, कुर्मी 4% हैं। वहीं दलित की आबादी 16 फीसदी हैं। अगर सवर्णों की आबादी पर गौर करें तो यह करीब 17% है। जिनमें ब्राह्मण 5.7% तथा राजपूत 5.2% हैं। इसके बाद भूमिहार समाज आता है, जिसका वोट प्रतिशत करीब 4.7% है। कायस्थ का वोट 1.5% हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी 16.9% है।

तेजस्वी युग में बदल रही आरजेडी
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या RJD ट्रांसफॉर्मेशन को तैयार है? इसका एक जवाब हां भी हो सकता है। दरअसल परंपरागत वोट बैंक से अलग राजद अपने कास्ट में भी खुद को फिट करने की कोशिश कर रहा है। पिछले कुछ बदलावों पर गौर करें तो प्रदेश राजद अध्यक्ष के पद पर रामचंद्र पूर्वे की जगह पर पार्टी के प्रमुख राजपूत चेहरों में से एक जगदानंद सिंह का चुना जाना काफी हद तक बदलाव शुरुआत थी। अब इसके बाद ब्रह्मजन समाज को राज्यसभा उम्मीदवार के लिए चुना जाना राजद में हो रहे बदलाव की बानगी को ही दर्शाता है।
