इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना महामारी से परेशान है. हर कोई इससे बचाव के रास्ते तलाश रहा है. भारत में भी गुजरते दौर के साथ हालात बेकाबू होते जा रहे हैं. ऐसे में दावा किया जा रहा है कि अगर कोरोना वायरस की वैक्सीन अगले साल की शुरुआत तक हाथ नहीं आई तो भारत बेहद बुरे दौर से गुजर सकता है.
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं के मुताबिक, इन हालातों में फरवरी 2021 से भारत में कोरोना वायरस के 2 लाख 87 हजार मामले प्रतिदिन दर्ज हो सकते हैं. फिलहाल भारत में रोजाना 23 हजार के करीब मरीज सामने आ रहे हैं. यह स्टडी उन 84 देशों की टेस्टिंग और केस डेटा पर आधारित हैं जो विश्व की कुल आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा हैं.
MIT के शोधकर्ता हाजहिर रहमनदाद, टीवाई लिम और जॉन स्टरमैन ने इस निष्कर्ष तक पहुंचे के लिए SEIR मॉडल (स्टैंडर्ड मैथमैटिकल मॉडल) का इस्तेमाल किया है. संक्रामक रोग रोगों का पता लगाने के लिए एपिडेमियोलॉजिस्ट इसी मॉडल का इस्तेमाल करते हैं.
शोधकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि इलाज ना मिलने की वजह से दुनियाभर में कुल मामलों की संख्या 2021 में मार्च से मई के बीच 30 से 70 करोड़ के बीच हो सकती है. अगले साल की शुरुआत तक कोरोना संक्रमण के चलते भारत में सबसे बदतर हालात होंगे. दावा यह भी किया गया है कि भारत में टेस्टिंग की जो रफ्तार है और खस्ताहाल स्वास्थ व्यवस्था देश में सबसे ज्यादा कहर बरपाएगी.
भारत के बाद फरवरी, 2021 के अंत तक अमेरिका (95,000 केस प्रतिदिन), दक्षिण अफ्रीका (21,000 केस प्रतिदिन) और ईरान (17,000 केस प्रतिदिन) में सबसे बुरे हालात होंगे.
इस शोध में तीन बेहद खास परिदृश्यों (सिनैरियो) का ध्यान रखा गया है. पहला, मौजूदा टेस्टिंग रेट और उसका प्रभाव क्या होगा. दूसरा, यदि 1 जुलाई, 2020 के बाद से टेस्टिंग रेट में 0.1 फीसद इजाफा होता है. तीसरी, अगर टेस्टिंग मौजूदा स्तर पर ही रहती है, लेकिन संपर्क दर का जोखिम 8 पर होता है यानी एक संक्रमित व्यक्ति कम से कम 8 लोगों को संक्रमित करता है.
यह मॉडल कोविड-19 के शुरुआती और आक्रामक परीक्षण के महत्व को दर्शाता है, क्योंकि इसके मामले काफी तेजी से बढ़ते हैं. इसका मतलब यह है कि टेस्टिंग में कमी या देरी आबादी के लिए ज्यादा घातक साबित हो सकती है. बदनसीबी से भारत में हालात बिल्कुल ऐसे ही हैं फिलहाल, आगे स्वास्थ व्यवस्था में कोई चमत्कारी सुधार होंगे इसकी उम्मीद न के बराबर है.
पहले सिनैरियो में मॉडल ने 84 देशों में डेढ़ अरब (1.55 बिलियन) से ज्यादा मामले बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है. जबकि दूसरे सिनैरियो में यदि मामले 0.1% प्रतिदिन के हिसाब से बढ़े तो संख्या 1 अरब 37 करोड़ (1.37 बिलियन) होगी.
अध्ययन कहता है कि , ‘इन दोनों परिस्थितियों में सितंबर-नवंबर, 2020 तक नए केस काफी ज्यादा हो जाएंगे. कुछ देशों (खासकर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अमेरिका) में ही अपर्याप्त उपायों के चलते लाखों केस होंगे. इसके विपरीत, बचाव के उपायों में नीतिगत परिवर्तन से बड़ा अंतर आएगा.’
अगर टेस्टिंग रेट मौजूदा गति के हिसाब से चलता रहा और कॉन्टैक्ट रेट 8 तक सीमित रहा तो तेजी से बढ़ रहे मामलों में भारी गिरावट भी आ सकती है. तीसरे सिनैरियों के अनुसार, कोरोना वायरस पॉजिटिव लोगों की संख्या वैश्विक स्तर पर 70 करोड़ तक हो सकती है. अध्ययन यह भी कहता है कि भविष्य के परिणाम टेस्टिंग पर काम और बीमारी के प्रसार को कम करने के लिए समुदायों और सरकारों की इच्छा पर अधिक निर्भर हैं.
यानी रिपोर्ट साफ कहती है कि टेस्टिंग और ईलाज के जरिए इसे रोक पाना बेहद मुश्किल है, कोरोना पर काबू पाने का सबसे कारगर उपाय है एक दूसरे से दूरी. जाहिर बात है कि मौजूदा वक्त में देश में जो हालात हैं उसके लिए काफी हद तक केंद्र की मोदी सरकार जिम्मेवार रही है. संभावना इस बात की ज्यादा है कि आने वाले वक्त में देश में फिर से लॉक डाउन लगाया जा सकता है. वैसे मार्च में भारत में लॉक डाउन लगा तो सही वक्त पर था लेकिन 36 दिनों बाद ही सरकार ने आर्थिक लाभ की वजह से लॉक डाउन में रियायते देनी शुरू कर दी।
खतरनाक बात यह रही कि जिस वक्त देश में कोरोना तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा था उस वक्त भारत सरकार ने अनलॉक का नारा देते हुए अर्थव्यवस्था में तेजी लाने और सरकारी खजाने को भरने की मकसद से लोगों को खुली छूट दे दी. कोरोना से बचाव को लेकर शुरूआती कदम तो सराहणीय रहे लेकिन बाद के फैसलों की पूरी दुनिया में निंदा हो रही है.
संदीप सिंह की विशेष रिपोर्ट
